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गोविन्द दामोदर स्तोत्र
 
(६०)
 
हे जिह्रे ! तू 'गोपोपते ! कंसरिपो ! मुकुन्द ! लक्ष्मीपते !
 
केशव ! वासुदेव ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' - इस नामामृतका
निरन्तर पान करती रह ।
 
( ६१ )
 
जो व्रजराज व्रजाङ्गनाओंको आनन्दित करनेवाले हैं, जिन्होंने
गौओंको चराने के लिये वनमें प्रवेश किया है; हे जिह्रे ! तू उन्हीं
मुरारिके 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' - इस नामामृतका निरन्तर
पान करती रह ।
 
( ६२ )
 
हे जिह्वे ! तू 'प्राणेश ! विश्वम्भर ! कैटभारे ! वैकुण्ठ !
 
नारायण ! चक्रपाणे ! गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' – इस
नामामृतका निरन्तर पान करती रह ।
 
( ६३ )
 
मधुसूदन ! हे पुराणपुरुषोत्तम ! हे
गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !'
 
'हे हरे ! हे मुरारे ! हे
 
रावणारे ! हे सीतापते श्रीराम !
 
- इस नामामृतका हे जिह्वे ! तू निरन्तर पान करती रह ।
(६४)
 
हे जिह्वे ! तू 'श्रीयदुकुलनाथ ! गिरिधर ! कमलनयन ! गौ,
 
गोप और गोपियोंको सुख देनेमें कुशल ! श्रीगोविन्द ! दामोदर !
माघव !' - इस नामामृतका निरन्तर पान करती रह ।
 
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