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गोविन्द - दामोदर-स्तोत्र
(४५)
 
जब रावणके साथ सीताजी समुद्रके मध्य में पहुँचीं तब यह
कहकर जोर-जोरसे रुदन करने लगीं- 'हे विष्णो ! हे रघुकुलपते ! हे
देवताओंको सुख और असुरोंको दुःख देनेवाले ! हे गोविन्द ! हे दामोदर !
हे माधव ! [हे राम! हे रघुनन्दन ! हे राघव !] प्रसन्न होइये, प्रसन्न होइये ।'
(४६)
 
पानी पीते समय जलके भीतरसे जब ग्राहने गजका पैर पकड़
लिया और उसका समस्त दुखी बन्धुओंसे साथ छूट गया तब वह
राज अधीर होकर अनन्यभावसे निरन्तर 'हे गोविन्द ! हे
दामोदर ! हे माधव !' ऐसे कहने लगा ।
 
(४७)
 
अपने पुरोहित शङ्खमुनिके साथ राजा हंसध्वजने अपने पुत्र
सुधन्वाको तप्त तैलकी कड़ाही में कूदते और 'हे गोविन्द ! हे
दामोदर ! हे माधव !' इन भगवान्के परमपावन नामींका जप
करते हुए देखा ।
 
(४८)
 
[ एक दिन द्रौपदी के भोजन कर लेनेपर असमय में दुर्वासा
ऋषिने शिष्योंसहित आकर भोजन माँगा ] तब वनवासिनी द्रौपदीने
भोजन देना स्वीकार कर अपने अन्तःकरण में स्थित श्रीश्यामसुन्दरको
'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' कहकर बुलाया ।
( ४९ )
 
योगी भी जिन्हें ठीक-ठीक नहीं जान पाते, जो सभी प्रकारकी
चिन्ताओंको हरनेवाले और मनोवांछित वस्तुओंको देनेके लिये
कल्पवृक्षके समान हैं तथा जिनके शरीरका वर्ण कस्तूरीके समान
नीला है उन्हें सदा ही 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' इन नामोंसे
स्मरण करना चाहिये ।
 
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