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गोविन्द - दामोदर-स्तोत्र
 
( ३० )
 
जिस समय कालियनागका मर्दन करनेके लिये कन्हैया कदम्बके
 
वृक्षसे कूदे, उस समय गोपाङ्गनाएँ और गोपगण वहाँ आकर 'हा
गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माघव !' कहकर बड़े ज़ोरसे रोने लगे ।
( ३१ )
 
जिस समय श्रीकृष्णचन्द्र कंसके धनुर्यज्ञोत्सव में सम्मिलित
होनेके लिये अक्रूरजीके साथ मथुरामें प्रवेश किया, उस समय
पुरवासीजन 'हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! तुम्हारी जय हो,
जय हो' ऐसा कहने लगे ।
 
( ३२ )
 
जब कंसके दूत अक्रूरजी वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण और बलरामको
वृन्दावनसे दूर ले गये तब अपने घर में बैठी हुई यशोदाजी 'हा
 
गोविन्द ! हा दामोदर ! हा माधव !' कह कहकर रुदन करने लगीं ।
( ३३ )
 
यशोदानन्दन बालक श्रीकृष्णको कालियहद में कालियनागसे
जकड़ा हुआ सुनकर गोपबालाएँ रास्ते में लोटती हुई 'हा गोविन्द !
हा दामोदर ! हा माधव !' कहकर जोरोंसे रुदन करने लगीं।
( ३४ )
 
अक्रूरके रथपर चढ़कर मथुरा जाते हुए श्रीकृष्ण को देख समस्त
गोपबालाएँ वियोगके कारण अधीर होकर कहने लगी- ' हा गोविन्द !
हा दामोदर ! हा माधव ! [ हमें छोड़कर तुम कहाँ जाते हो ] ?'
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