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अनुबन्धः
 
सर्वयोग्यमनायासम्
 
सर्वलक्षणसम्पन्ना
 
सर्वलोकशरण्याय
 
सर्वस्य शरणं सुहृत्
 
सर्वाश्चर्यमयं देवम्
 
सर्वेश्वरेश्वरः कृष्णः
 
सर्वैश्वर्यगुणोपेतां
सहकार्यनपेक्षा मे
 
सहस्रशीर्षम्
 
सहस्रस्थूणे विमिते दृढ
 
सहायकृत्यं किन्तस्य
 
साक्षान्मन्मथमन्मथः
 
साध्यभक्तिस्तु सा हन्त्री
सामोपहितया वाचा
साऽहं वै पङ्कजे जाता
सीतामुवाचातियशा
सीतासमक्षं काकुत्स्थमिदं
 
सुकुमारौ महाबलौ
 
सुहृदं सर्वभूतानाम्
 
सृष्टिबीजं तथा पद्मम्
सोऽश्नुते सर्वान् कामान्
स्थिते मनसि
स्रग्वस्राभरणैर्युक्तम्
स्वयं मृत्पिण्डभूतस्य
 
हताखिलक्लेशमलैः
हरे ! विहरसि
 
हिरण्यवर्णाम्
 
ह्रीश्च ते लक्ष्मीश्च पत्न्यौ
 
127
 
वि.ध.
 
रा.बा.१-२७
 
रा.यु.१७-५५
 
श्वे.उ.३-१७
 
वि.ध.७४-४४
 
ब्रा.पु.
 
ल.तं.२-३३
 
महाना.उ.
 
जै. ब्रा. ४ ३८४
 
रा.कि.३६-८
 
भाग.१०-३२-२
 
सा.तं.
रा.कि.३१-८
 
म.भा.शां.२२१-२०
 
रा. अयो. ३१-२
 
रा. अर.१५-६
 
रा. अर.१९-१४
 
भ.गी. ५-२९
 
परम.सं.
 
तै. उ. आन. १
 
व.च.श्लो.
 
पौ.सं.
 
म.भा. शां. २९४ - १९
 
स्तो. र. ४१
 
म.भा. सभा. ९०-३१
 
श्रीसू. १
 
तै. आर. ३-१३-४१
 
54
 
7
 
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54
 
31
 
8,33
 
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35,54
 
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7
 
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