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अनुबन्धः
 
शान्तानन्त......
शिरसा याचतस्तस्य
 
शिरो रोगः प्रतिश्यायः
 
शीतोष्ण-वात-वर्षाम्बु
 
शुद्धे महाविभूत्याख्ये
शेषवृत्तिविधानेऽपि
 
शेषशेषाशनादि सर्वं परिजनम्
 
श्रयन्तीं श्रीयमाणाञ्च
 
श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्
श्रियं देवीमुपह्वये
श्रियः श्रीश्च भवेदग्र्या
 
श्रीनिलयमालाधारिणी
 
श्रीमन्नारायण! स्वामिन् !
 
श्रीरसि यतः
 
श्रीरित्येव च नाम ते
 
श्रीदेवी पयसस्तस्मात्
 
श्रीवत्सवक्षा नित्यश्रीः
 
श्रूयते किल गोविन्दे
 
शृणाति निखिलान् दोषान्
 
श्रेयो न ह्यरविन्दलोचनमनः
 
श्रोत्रियस्य चाकामहतस्य
 
षडङ्गं तमुपायञ्च
षड्विधा शरणागतिः
 
षणु-दाने
 
स श्लाघ्यस्सगुणी
 
स भ्रातुश्चरणौ गाढम्
 
स यदि पितृलोककामो
 
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च.श्लो. ४
 
रा.यु. २४-२१
 
वि.पु.६-५-३
 
वि.पु.६-५-८ .
 
वि.पु.६-५-७२
 
वि.ध.
 
वै.ग.
 
अहि.सं. २१-८
 
श्रीसू. ५
 
श्रीसू. ३
 
रा. अयो.४४-१५
 
श्रीमन्त्रम्
 
द्व.मं.
 
श्रीगु.र.को.२९
 
च. श्लो. १
 
वि.पु.१-९-१००
 
रा.यु.११४-१५
 
वि.ध.२-२५
 
अहि.सं.५१-६५
 
च. श्लो. ३
 
तै. उ. आन. ८
 
ल.तं.१७-५९
 
अहि.सं.३७-२९
 
धा.पा.१४६५
 
वि.पु.१-९-१३१
रा. अयो. ३१-२
 
छां.उ.८-२-१
 
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