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लोकवत्तु लीलाकैवल्यम्
 
वधार्हमपि काकुत्स्थः
वर्षायुतैर्यस्य गुणा
वाङ्मनसि
 
वाचः परं प्रार्थयिता
 
विकारविरहो वीर्यं
 
विकासिकमलस्थिता
 
विज्ञानसारथिर्यस्तु
 
विदितस्स हि धर्मज्ञः
 
विद्यते स्त्रीषु चापल्यम्
 
विद्याचोरो गुरुद्रोही
विद्यासहायवन्तं माम्
 
विधिशिवसनकाद्यैः
 
विना हेयैर्गुणादिभिः
 
विभीषणो वा सुग्रीव !
 
विश्वमेवेदं पुरुषः
 
विष्टम्भो दिवो धरुणः पृथिव्या
 
विष्णुपत्नी
 
विष्णुपोतं विना नान्यत्
विष्णोर्देहानुरूपां वै
विहितत्त्वाच्चाश्रमकर्मापि
 
वृद्धौ च मातापितरौ
 
शतह्रदानां लोलत्वं
 
शबर्या पूजितस्सम्यक्
 
शरणं त्वां प्रपन्ना ये
 
शरणागतवत्सलः
 
शरणागतिरित्युक्ता
 
शरा नानाविधापि
 
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ब्र. सू. २-१-३३
 
रा.सुं. ३८-३४
म.भा.कर्ण. ९१-९७
 
छां.उ.६-८-६
 
शौ.सं.
 
ल.तं.२-३०
 
वि.पु.१-९-१००
 
कठ.उ.१-३-९
 
रा.सुं. २१-२०
 
रा. युद्ध. १६-९
अत्रि स्मृ.१ १०
मं.भा,शां.३४७-६९
 
स्तो. र. ४७
वि.पु.६-५-७५
 
रा.यु.१८-३५
 
महाना.उ.११-२५
 
तै.सं. ४-४-१२
 
तै.सं.४-४-१२
 
वि.ध.१-५९
 
वि.पु.१-९-१४५
 
ब्र.सू. ३-४-३२
 
रा. अयो.६३-३२
 
रा. अर.१३-६
 
रा.बा. १- ५८
 
ब्रा.पु. ५३
 
रा.सुं. २१ - २०
 
अहि.सुं.३७-३१
 
उ.रा.१०९-७
 
गद्यञयभाष्यम्
 
49
 
53
 
39
 
81
 
4
 
33
 
10
 
47
 
14
 
12
 
65
 
4
 
84
 
10
 
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5
 
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7
 
60
 
60
 
12
 
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18
 
34
 
19
 
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