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भवतां कथ्यते सत्यं
 
भूयिष्ठं तेज एवाद्भिः
भोगमात्रसाम्यलिङ्गाच
 
मञ्चित्ता मगतप्राणा:
 
मच्छरैस्त्वं रणे शान्तः
 
मात्कृते काकमात्रे तु
 
मद्भक्तिं लभते पराम्
 
मन्त्रमन्त्रेश्वरन्यासात्
 
मया त्वं परुषाण्युक्तः
 
मया विना शुष्यति
 
मयि द्वेषानुबन्धोऽभूत्
 
महात्मनाः
 
महाविभूतेस्सम्पूर्ण
मातरं पद्ममालिनीम्
 
मातर्मैथिलि ! राक्षसी:
 
माता पिता भ्राता
 
मातृदेवो भव
 
मामेव ये प्रपद्यन्ते
 
मित्रभावेन संप्राप्तं
 
मित्रमौपयिकं कर्तुम्
 
यं योगिनः
 
यः शूद्रं भगवद्भक्तम्
 
यः सर्वज्ञः सर्ववित्
यज्ञविद्या महाविद्या
 
यतो वा इमानि भूतानि
यत्र विश्वं भवत्येकनीळम्
यथा रत्नानि जलधे:
 
यथार्हं केशवे वृत्तिम्
 
122
 
वि.ध.१-५९
 
अहि.सं. ५२
 
ब्र.सू. ४-४-२१
 
भ.गी. १०-९
 
रा.यु.४१-६९
 
रा.सु. ३८-३९
 
भ.गी. १८-५४
 
सा.सं.६-२३
 
रा.कि.३६-२०
 
रा.सुं.३६-२८
वि.पु. १- २०, २१
 
भ.गी.भा.७-१९
 
ब्रा.पु.
 
श्रीसू. ११
श्रीगु.र.को. ५०
 
सु.उ.६
 
तै.उ.शि. ११
 
भ.गी. ७-११
 
रा.यु.१८-३
 
रा.सुं.२१-१९
म.भा.शां.४६-१३९
 
इ.स.२६-२६
 
मुं.उ.१-१-९
 
वि.पु.१-९-१२०
 
तै.उ.भृ.१
महाना.उ.१-१५
 
वाम.पु.४-४०
 
म.भा.उ.३९-३८
 
गद्यत्रयभाष्यम्
 
57
 
32
 
21
 
36
 
53
 
43
 
72
 
30
 
66
 
11
 
65
 
72
 
12
 
10
 
15
 
61
 
60
 
70
 
37,55,77
 
14
 
82
 
65
 
33
 
4
 
48
 
33
 
39
 
21