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नेहाभिक्रमनाशोऽस्ति
नोपजनं स्मरन्निदं शरीरम्
 
न्यास इत्याहुर्मनीषिणः
 
न्यासः पञ्चाङ्गसंयुतः
 
पद्मे स्थितां पद्मवर्णां
 
परमात्मा च तेनैव
 
परमात्मा च सर्वेषामाधारः
 
परमे व्योमन्
परस्परस्य सदृशौ
 
पराभिभवनसामर्थ्यं
 
परास्य शक्तिर्विविधैव श्रूयते
पशुपक्षिमनुष्याद्यैः
 
पश्य मे पार्थ! रूपाणि
 
पश्यतां सर्वदेवाना
 
पापानां वा शुभानां वा
 
पितेव त्वत्प्रेयान्
 
पुंप्रधानेश्वरेश्वरी
 
पुंयोगादाख्यायाम्
 
पुंसां दृष्टिचित्तापहारिणां
 
पुरुषः स परः पार्थ!
 
पुष्पहासः
 
प्रकृतिं विद्धि मे पराम्
 
प्रकृतेर्गुणसंमूढाः
 
प्रकृष्टं विज्ञानम्
 
प्रणम्य कृष्णं सहसा
 
प्रणिपातप्रसन्ना हि
 
प्रपत्तेः क्वचिदप्येवं
 
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भ.गी. २-४०
 
छां.उ.८-१२-३
 
महाना.उ.६७-३९
 
ल.तं.१७-७४
 
श्रीसू. ४
 
अहि.सं.३७-२७
 
वि.पु.६-४-४०
 
तै. आर. २-८,९-६
 
रा.बा. ४८-५
 
श्वे. उ. ६-८
 
वि.पु.६-५-७
 
भ.गी. ११-५
 
व.पु.१-९-१०५
 
रा.यु. ११६-४५
 
श्रीगु.र.को. ५२
 
ल. स. १
 
पा.सू.४-१-४८
रा. अयो.३-२९
 
भ.गी. ८- २२
 
श्रीरं. स्त. १-८८
 
भ.गी.७-५
 
भ.गी.३-२९
 
व. स्त. १५
 
वि.ध.४-३५
 
रा.सुं. २७-४४
 
सन.सं.
 
गद्यत्रयभाष्यम्
 
68
 
83
 
19
 
25
 
10
 
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9,34
 
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