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अनुबन्धः
 
न त्वहं तां विना
 
न त्वत्समोऽस्त्यभ्यधिकः
 
न धर्मनिष्ठोऽस्मि
 
न तस्येशे कश्चन तस्य
न क्षमामि
 
ननु प्रपन्नस्सकृदेव नाथ!
नमामि सर्वलोकानाम्
 
नरसम्बन्धिनो नाराः
 
नराज्जातानि तत्त्वानि
ना कुण्डली ना मकुटी
 
नाकस्य पृष्ठमारुह्य
 
नागभोगे विन्यस्तवामभुजम्
 
नानयोर्विद्यते परम्
नारायणात्मिकां देवीं
 
नास्याब्रह्मवित्कुले भवति
 
नास्यावरपुरुषाः क्षीयन्ते
 
नि च देवीं मातरम्
निक्षेपापरपर्यायो
 
नित्यं नित्याकृतिधरम्
 
नित्यं विभुं सर्वगतं सुसूक्ष्मम्
नित्यसिद्धे तदाकारे
 
नित्यानुकूलं स्वतः
 
नित्याभिवाञ्छितपरस्परनीचभावैः
 
नित्याsलिङ्गा स्वभावसंसिद्धिः
 
नित्यैवैषा जगन्माता
 
नित्यैवैषा
 
निशि नेति चेत् न
 
निस्संशयेषु सर्वेषु
 
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रा. अर.६२-१७
 
भ.गी.११-४३
 
स्तो. र. २२
 
महाना.उ.१-१-२
 
वरा.पु.
 
स्तो.र.६४
 
वि.पु.१-९-११७
 
अहि.सं. ५२-५०
 
म.भा. आनु. १७८-७
 
रा.बा.६ - १०
 
महाना.उ.५-२०
 
नि. ग्रं.
 
वि.पु.१-८-३५
 
का.सं.
 
मुं.उ.३-२-९
 
छां.उ. ४-१२-२
 
श्रीसू. १२
ल.तं.१७-७४
 
मुं.उ.१-१-६
 
पौ.सं.३८-३८
 
च. श्लो. २
 
वै. स्त.७७
 
र. आ.
 
वि.पु.१-८-१७
 
वि.पु.१-८-१७
 
ब्र.सू. ४-२-१८
 
म.भा.शां.३५९-७१
 
43
 
8
 
59
 
63
 
65
 
26
 
13
 
5
 
28,48
 
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