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ग )
 

 
शरणागति गद्य में कुल
 
पच्चीस वाक्य हैं । वाक्य संख्या

७, ८, ९, १० तथा २५ पद्य में हैं । ७ व ८ पाञ्चरात्र आगम

के श्लोक हैं ६ व १० गीता के श्लोक हैं । अन्तिम पद्य मिलता

तो सभी पुस्तकों में है किन्तु प्राचीन व्याख्याकारों की इस

पर टीका नहीं मिलती । वाक्यसंख्या १४ तथा १५ में गीता

के तीन तीन उद्धरण हैं तथा वाक्य संख्या २३ में श्रीमद्वाल्मी-

कीय रामायण से ३ तथा गीता से एक उद्धरण है ।
 

 
शरणागतिगद्य के पहिले चार वाक्यों में श्रीरामानुज-

लक्ष्मी संवाद है । पहिला तथा दूसरा वाक्य आचार्य की वाणी

में है। तीसरा तथा चौथा लक्ष्मी की ओर से हैं । इसके

पश्चात् २४ वें वाक्य तक यतिपति- लक्ष्मीपति संवाद है ।

५ वें से १७ वें वाक्य तक आचार्य की वारगीणी है । १८ वें से

२४ वें तक के वाक्य भगवान् की ओर से हैं । अन्तिम वाक्य

आचार्य की वारी है ।
 
णी है ।
 
श्रीरंगगद्य में श्री रङ्गनाथ भगवान् की शरणागति एवं

प्रार्थना है । श्री रङ्गनाथ भगवान् अर्चावतार हैं और श्रीरंग-

गद्य शरणागति का संक्षिप्त संस्करण है । इस गद्य में वाक्यों

की संख्या कुल सात है जिनमें चौथा और पाँचवां दो वाक्य

पद्य में हैं । ये प्राचीन श्लोक हैं ।
 

 
श्री वैकुण्ठगद्य में वैकुण्ठधाम का वर्णन है। वाक्यों की

संख्या सात है । पहिला वाक्य पद्य में है। शेष गद्य में हैं ।

चौथे वाक्य में भगवान् के रूप के वर्णन के प्रसंग में स्तोत्र-

रत्न के कतिपय श्लोकांश दिये गये हैं ।