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उदारा:सर्व
 
चतुर्भिराजानु
 
तस्मात्प्रणम्य
 
तेषां ज्ञानी
 
त्वमेव माता
 
पितरं मातरं
 
पितासि लोकस्य
 
पुरुषस्स पर:
 
प्रबुद्धमुखाम्बुज
 
प्रियावतंसोत्पल
 
बहूनां
 
भक्त्या त्वनन्यया
 
मद्भक्तिं लभते पराम्
 
रामो द्विर्नाभिभाषते
 
सकृदेवप्रपन्नाय
सर्वधर्मान् परित्यज्य
सर्वधर्माश्चि
 
अशुद्ध
तेऽब्रजं
 
मदनुभवस्त्व
 
धर्य
 
क्ति
 
( ४२ )
 

 
११
 
३३ २
 

 

 
११
 
W
 

 
१२
 
३२
 
३३
 
१२
 
१२
 
१२
 
१७
 

 

 
भक्ति
 
गीता ७।१८
 
स्तोत्ररत्न ३३
 
गीता ११४४
गीता ७ । १७
 
पाञ्चरात्र आगम
 
मदनुभवस्त्वं
 
धैर्य
 
पाञ्चरात्र आगम
 
गीता ११४३
 
गोता ८२२
 
स्तोत्ररत्न ३५
 
स्तोत्ररत्न ३३
 
२ गीता ७।१६
 
६ गीता ११५४
गीता १८/५४
 

 
१७
 
१७ ६ गीता १८/६६
 

 
पाञ्चरात्र प्रागम
 
शुद्धि सूची
 
शुद्ध
तेऽव्रजं
 
वा०रा० अ० १८/३०
 
वा०रा० यु० १८/३४
 
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