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( ३८ )
 

 
कृपया स्नेहगर्भया दृशावलोकितः, सम्यग भिवन्दितैस्तै रेवानुमतः

भगवन्तमुपेत्य, श्रीमता मूलमन्त्रेण, २८
 

 
"भगवन् ! माम् ऐकान्तिकात्यन्तिकपरिचर्याकरणाय परि
-
गृह्णोणीष्व" इति याचमानः प्रणम्य, श्रात्मात भ
प्रा
त्मानं भगवते निवेदयेत् ।
 

(४)
 

 
ततो भगवता स्वयमेवात्मसञ्जीवनेनामर्यादशीलवताऽति-
प्र

प्रे
मान्वितेनावलोंलोकनेनावलोक्य सर्वदेशसर्व कालसर्वावस्थोचिता-

त्यन्तशेषभावाय स्वीकृतोऽनुज्ञातश्च प्रत्यन्तसाध्वसविनयावनतः

किङ्कुर्वारगःणः कृताञ्जलिपुटो भगवन्तमुपासीत ।
 
(५)
 

 
 
जाकर उनको ठीक ठीक प्रणाम करे तथा उनकी अनुमति प्राप्त

कर भगवान् के समीप पहुॅहुँचे। फिर श्रीमूल मन्त्र के द्वारा–२८
 

 
"भगवन् ! मुझे ऐकान्तिक एवं आत्यन्तिक परिचर्या के

निमित्त ग्रहण करें," इस प्रकार याचना करते हुए प्रणाम

करे और अपने आपको भगवान् के प्रति निवेदन करे ॥४॥
 

 
इसके पश्चात् भगवान् स्वयं ही आत्मा को जीवनदान

देने वाले असीम शील एवं अत्यन्त प्रेममयी दृष्टि से देखकर

सार्वदेशिक सार्वकालिक एवं सभी अवस्थाओं के अनुरूप

अत्यन्त शेषभाव के निमित्त स्वीकार करते हैं। भगवान् की

अनुज्ञा को प्राप्तकर अत्यन्त भय और विनय से अवनत होकर

तथा अब क्या करना है यह सोचते हुए हाथ जोड़े हुए भगवान्

की उपासना करे ॥५॥