This page has been fully proofread once and needs a second look.

( ३७ )
 

 
कदा मां भगवान् स्वकीयया अतिशीतलया दृशा अवलोक्य

स्निग्धगम्भीरमधुरया गिरा परिचर्यायामाज्ञापयिष्यति ! २५
 

 
इति भगवत्परिचर्यायाम् प्राशां वर्धयित्वा, तयंयैवाशया

तत्प्रसादोपबृं हितया भगवन्तमुपेत्य, दूरादेव भगवन्तं, शेषभोगे

श्रिया सहासीनं, वैनतेयादिभिः सेव्यमानम्, २६
 

 
"
समस्तपरिवाराय श्रीमते ना
'ना
रायणाय नमः" २७
 

 
इति प्रणम्य, उत्थायोत्थाय, पुनः पुनः प्रणम्य, अत्यन्त-

साध्वसविनयावनतो भूत्वा, भगवत्पार्षदगरगण​नाय कंर्कैद्वारिपालैः
 

 
 
कब भगवान् अपनी अतिशीतल दृष्टि से मुझे देखकर

स्निग्ध गम्भीर, मधुर वाणी से परिचर्या के लिये मुझे प्राज्ञा

देंगे । २५
 
467
 
!
 

 
इस प्रकार भगवान् की परिचर्या में आशासंवर्धन करते

हुए, उसी प्राशा से भगवान् की प्रसन्नता के फलस्वरूप भग-

वान् को प्राप्त कर दूर से ही भगवान् को शेषपर्यंक पर लक्ष्मी

के साथ विराजमान और गरुड़ आदि पार्षदों के द्वारा सेवित

समस्त परिवार समेत श्रीदेवी समेत नारायण के लिये

नमस्कार है, २६-२७
 
का
 

 
इस प्रकार प्रणाम करे उठ उठकर बारम्बार प्रणाम करे,

अत्यन्त भय एवं विनय से झुककर भगवान् के पार्षदगण नायकों

एवं द्वारपालों द्वारा कृपापूर्वक एवं स्नेहगर्भित दृष्टि से देखा