2023-06-05 14:40:17 by Krishnendu
This page has been fully proofread once and needs a second look.
( ३६ )
कदाऽहं भगवन्तं, नारायणं मम कुलनाथं मम कुलदैवतं
मम कुलधनं मम भोग्यं मम मातरं मम पितरं मम सर्वं
साक्षात्करवारिगणि चक्षुषा; २१
कदाऽहं भगवत्पादाम्बुजद्वयं शिरसा धारयिष्यामि; २२
कदाऽहं भगवत्पादाम्बुजद्वय परिचर्याशया निरस्तसमस्तेतर-
भोगाशः अपगतसमस्तसांसारिकस्वभावः तत्पादाम्बुजद्वयं
प्रवेक्ष्यामि; २३
कदाऽहं भगवत्पादाम्बुजद्वय परिचर्याकरपरिचर्याकरणयोग्यः तदेक
-
भोगस्तत्पादौ परिचरिष्यामि; २४
मैं कब भगवान् नारायण का जो मेरे कुल के नाथ हैं, मेरे
कुल के देवता हैं, मेरे कुलघधन हैं, मेरे माता हैं, मेरे पिता हैं,
मेरे सर्वस्व हैं, अपने नेत्रों से साक्षात् करूंरूँगा । २१
मैं कब भगवान् के दोनों चरणकमलों को शिर पर
धारण करूगांरूँगा । २२
मैं कब भगवान् के दोनों चरणकमलों की परिचर्या की
प्राशा से समस्त इतर पदार्थों के भोग की
आशात्याग सकूंसे समस्त इतर पदार्थों के भोग की आशा त्याग सकूँगा,
सम्पूर्ण सांसारिक भावों से निवृत्त हो सकूँगा, तथा भगवान्
के दोनों चरण कमलों में प्रवेश पा सकूकूँगा । २३
कब में भगवान् के दोनों चरणकमलों की परिचर्या के
योग्य बनकर तथा उनको ही अपना भोग्य मानकर उनकी
परिचर्या में लगूंगा । २४
कदाऽहं भगवन्तं, नारायणं मम कुलनाथं मम कुलदैवतं
मम कुलधनं मम भोग्यं मम मातरं मम पितरं मम सर्वं
साक्षात्करवा
कदाऽहं भगवत्पादाम्बुजद्वयं शिरसा धारयिष्यामि; २२
कदाऽहं भगवत्पादाम्बुजद्वय
भोगाशः अपगतसमस्तसांसारिकस्वभावः तत्पादाम्बुजद्वयं
प्रवेक्ष्यामि; २३
कदाऽहं भगवत्पादाम्बुजद्वय
भोगस्तत्पादौ परिचरिष्यामि; २४
मैं कब भगवान् नारायण का जो मेरे कुल के नाथ हैं, मेरे
कुल के देवता हैं, मेरे कुल
मेरे सर्वस्व हैं, अपने नेत्रों से साक्षात् क
मैं कब भगवान् के दोनों चरणकमलों को शिर पर
धारण क
मैं कब भगवान् के दोनों चरणकमलों की परिचर्या की
प्राशा से समस्त इतर पदार्थों के भोग की
आशा
सम्पूर्ण सांसारिक भावों से निवृत्त हो सकूँगा, तथा भगवान्
के दोनों चरण कमलों में प्रवेश पा स
कब में भगवान् के दोनों चरणकमलों की परिचर्या के
योग्य बनकर तथा उनको ही अपना भोग्य मानकर उनकी
परिचर्या में लगूंगा । २४