2023-06-05 06:03:52 by Krishnendu
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(३५)
आत्मभोगेना [न] नुसंहितपरादिकालं
दिव्यामलकोमला-
बलोकनेन विश्वमाह्लादयन्तम्, १८
दिव्यामलकोमला-
ईषदुन्मीलितमुखाम्बुजोदर विनिर्गतेन दिव्याननारविन्द-
शोभाजन केन दिव्यगाम्भीर्योयौदार्य सौन्दर्य माधुर्याद्यनवधिकगुरणगरण-
विभूषितेनप्रअतिमनोहरदिव्यभावगर्भरेंगभेण दिव्यलीलालापामृतेन
अखिलजनहृदयान्तराण्यापूरयन्तं भगवन्तं नारायणं ध्यानयोगेन
दृष्ट्वा, १६
९
[ततो] भगवतो नित्यस्वाम्यम्, आत्मनो नित्यदास्यं च
यथावस्थितमनुसन्धाय, २०
जिनके आत्मभोग को काल की सीमाऐं सीमित नहीं कर
पातीं । ऐसे भगवान् अपनी दिव्य निर्मल एवं कोमल दृष्टि से
विश्व को आह्लादित करते हैं । १८
उनके किश्चित् खुले हुए मुखारविन्द के भीतर से निकले
हुए दिव्य अमृतमय वचन दिव्य मुखकमल की शोभा बढ़ाते हैं,
वे दिव्य गम्भीरता, उदारता, मधुरता आदि पूर्ण गुरगणसमुदाय
से विभूषित हैं, अत्यन्त मनोहर भाव से युक्त हैं सब लोगों का
हृदयश्राआनन्द से परिपूर्ण करते हैं। ऐसे भगवान् नारायण का
ध्यानयोग के द्वारा दर्शन कर । १६
९
भगवान् के नित्य स्वामित्व तथा अपनी नित्य दासता का
ठीक ठीक अनुसन्धान कर इस प्रकार अभिलाषा करे – २०
आत्मभोगेना [न] नुसंहितपरादिकालं
बलोकनेन विश्वमाह्लादयन्तम्, १८
दिव्यामलकोमला-
ईषदुन्मीलितमुखाम्बुजोदर
शोभाजन
विभूषितेन
अखिलजनहृदयान्तराण्यापूरयन्तं भगवन्तं नारायणं ध्यानयोगेन
दृष्ट्वा, १
[ततो] भगवतो नित्यस्वाम्यम्, आत्मनो नित्यदास्यं च
यथावस्थितमनुसन्धाय, २०
जिनके आत्मभोग को काल की सीमाऐं सीमित नहीं कर
पातीं । ऐसे भगवान् अपनी दिव्य निर्मल एवं कोमल दृष्टि से
विश्व को आह्लादित करते हैं । १८
उनके किश्चित् खुले हुए मुखारविन्द के भीतर से निकले
हुए दिव्य अमृतमय वचन दिव्य मुखकमल की शोभा बढ़ाते हैं,
वे दिव्य गम्भीरता, उदारता, मधुरता आदि पूर्ण गु
से विभूषित हैं, अत्यन्त मनोहर भाव से युक्त हैं सब लोगों का
हृदय
ध्यानयोग के द्वारा दर्शन कर । १
भगवान् के नित्य स्वामित्व तथा अपनी नित्य दासता का
ठीक ठीक अनुसन्धान कर इस प्रकार अभिलाषा करे – २०