2023-06-05 05:53:34 by Krishnendu
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( ३४ )
नूपुरादिभिरत्यन्तसुखस्पर्शे शैर्दिव्यगन्धं धैर्भूषरगंणैर्भूषितं,
श्रीमत्या
वैजयन्त्या वनमालया विराजितं, शङ्खचक्रगदासिशार्ङ्गगादि-
दिव्यायुर्घधैस्सेव्यमानम्, १५
श्रीमत्या
स्वसङ्कल्पमात्रा वक्लृप्त
जगज्जन्मस्थितिध्वंसादिके श्रीमति
विष्वक्सेने न्यस्तसमस्तात्मैश्वर्यम्, १६
वैनतेयादिभिस्स्वभावतोनिरस्तसमस्त सांसारिकस्वभाववै-
भं
र्भगवत्परिचर्याकररणयोग्यंभंयैर्भगवत्परिचर्येयैकभोगगैर्नित्य-सिद्धैरनन्तंतै-
ग्रं
र्यथायोगं सेव्यमानम्, १७
-
"
कावीञ्चीसूत्र, और नूपुर आदि अत्यन्त सुखद स्पर्श वाले दिव्य
गन्ध युक्त आभूषणों से विभूषित हैं। श्रीमती वनमाला शोभा दे
रही है। शङ्ख, चक्र, गदा, अससि और शार्ङ्ग धनुष आदि दिव्य
आयुध उनकी सेवा में उपस्थित रहते हैं । १५
अपने संकल्पमात्र से सम्पन्न होने वाले संसार की सृष्टि,
पालन और संहार आदि के लिये भगवान् ने अपना ऐश्वर्य
श्रीमान् विष्वक्सेन को समर्पित कर रक्खा है । १६
जिनमें स्वभाव से ही समस्त सांसारिक भावों काप्रअभाव
है, जो भगवान् को सेवा करने के योग्य हैं तथा भगवान् की
सेवा ही जिनका एकमात्र भोग है ऐसे गरुड आदि नित्य
सिद्ध अनन्त पार्षद यथावसर भगवान् की सेवा में संलग्न
सिद्ध अनन्त पार्षद
रहते हैं । १७
नूपुरादिभिरत्यन्तसुखस्पर्
वैजयन्त्या वनमालया विराजितं, शङ्खचक्रगदासिशार्ङ्
दिव्यायु
श्रीमत्या
स्वसङ्कल्पमात्रा
विष्वक्सेने न्यस्तसमस्तात्मैश्वर्यम्, १६
वैनतेयादिभिस्स्वभावतोनिरस्तसमस्त सांसारिकस्वभा
भं
र्भगवत्परिचर्याक
ग्रं
र्यथायोगं सेव्यमानम्, १७
-
"
का
गन्ध युक्त आभूषणों से विभूषित हैं। श्रीमती वनमाला शोभा दे
रही है। शङ्ख, चक्र, गदा, अ
आयुध उनकी सेवा में उपस्थित रहते हैं । १५
अपने संकल्पमात्र से सम्पन्न होने वाले संसार की सृष्टि,
पालन और संहार आदि के लिये भगवान् ने अपना ऐश्वर्य
श्रीमान् विष्वक्सेन को समर्पित कर रक्खा है । १६
जिनमें स्वभाव से ही समस्त सांसारिक भावों का
है, जो भगवान् को सेवा करने के योग्य हैं तथा भगवान् की
सेवा ही जिनका एकमात्र भोग है ऐसे गरुड आदि नित्य
सिद्ध अनन्त पार्षद यथावसर भगवान् की सेवा में संलग्न
सिद्ध अनन्त पार्षद
रहते हैं । १७