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नूपुरादिभिरत्यन्तसुखस्पर्शे दिव्यगन्धं भूषरगंर्भूषितं,
वैजयन्त्या वनमालया विराजितं, शङ्खचक्रगदासिशाङ्गदि-
दिव्यायुर्घस्सेव्यमानम्, १५
 
श्रीमत्या
 
स्वसङ्कल्पमात्रा क्लृप्त
जगज्जन्मस्थितिध्वंसादिके श्रीमति
विष्वक्सेने न्यस्तसमस्तात्मैश्वर्यम्, १६
 
वैनतेयादिभिस्स्वभावतोनिरस्तसमस्त सांसारिकस्वभाव-
भंगवत्परिचर्याकररणयोग्यंभंगवत्परिचर्येकभोगनित्य-सिद्धैरनन्तं-
ग्रंथायोगं सेव्यमानम्, १७
 
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कावीसूत्र और नूपुर आदित्यन्त सुखद स्पर्श वाले दिव्य
गन्ध युक्त आभूषणों से विभूषित हैं। श्रीमती वनमाला शोभा दे
रही है। शङ्ख, चक्र, गदा, अस और शार्ङ्गधनुष आदि दिव्य
आयुध उनकी सेवा में उपस्थित रहते हैं । १५
 
अपने संकल्पमात्र से सम्पन्न होने वाले संसार की सृष्टि,
पालन और संहार आदि के लिये भगवान् ने अपना ऐश्वर्य
श्रीमान् विष्वक्सेन को समर्पित कर रक्खा है । १६
 
जिनमें स्वभाव से ही समस्त सांसारिक भावों का प्रभाव
है, जो भगवान् को सेवा करने के योग्य हैं तथा भगवान् की
सेवा ही जिनका एकमात्र भोग है ऐसे गरुड आदि नित्य
यथावसर भगवान् की सेवा में संलग्न
 
सिद्ध अनन्त पार्षद
 
रहते हैं । १७