2023-06-05 03:41:27 by Krishnendu
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( ३२ )
प्रत्यग्रोन्मीलितसरसिज सदृशनयनयुगलं स्वच्छनीलजीमूत-
सङ्काशंप्रअत्युज्ज्वलपीतवाससं, स्वया प्रभया प्रअतिनिर्मलया
अतिशीतलया (प्रअतिकोमलया ) स्वच्छया मारिणणिक्याभया कृत्स्नं
जगद्भासयन्तम् । १२
We
ल
अचिन्त्य दिव्याद्भुत - नित्ययौवन - स्वभावलावण्यमयामृत-
सागरम् अतिसौकुमार्यादीषत्प्रस्विन्नवदालक्ष्यमारणललाटफलक-
दिव्यालकावलीविराजितम्, १३
प्रबुद्धमुग्धाम्बुजचारुलोचनं, सविभ्रमभ्रु लत रूलतमुज्ज्वलाधरम् ।
शुचिस्मितं, कोमलगण्डमुन्नसं...
11
... ... ... ॥
उदग्रपीनांस विलम्बि कुण्डलालकावलीबन्धु रकम्बुकन्धरम् ।
-
-
भगवान् के दोनों नेत्र तुरन्त खिले हुए कमलों के समान
हैं । उनका दिव्यमंगल विग्रह निर्मल श्याम मेघ के समान
है । वे अत्यन्त उज्ज्वल पीताम्बर धारण किये हैं । वेत
अत्यन्त
निर्मल, अत्यन्त शीतल, [ अत्यन्त कोमल ] स्वच्छ मारिणणिक्य
की सी आभा से सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित करते हैं । १२
वे अचिन्त्य, दिव्य, अद्भुत, नित्य-यौवन, स्वभाव एवं
लावण्यमय अमृत के समुद्र हैं । अत्यन्त सुकुमारता के कारण
उनका ललाट कुछ पसीने की बूंदों से युक्त दिखायी देता है
वहाँ तक
फैली हुई उनकी दिव्य अलकावली शोभाय-
मान है । १३
फैली हुई उनकी दिव्य
भगवान् के नेत्र विकसित कोमल कमल के समान
सुन्दर हैं, उनकी भ्रूलता विभ्रम विलास से युक्त है, उनके
प्रत्यग्रोन्मीलितसरसिज
सङ्काशं
अतिशीतलया (
जगद्भासयन्तम् । १२
We
ल
अचिन्त्य
सागरम् अतिसौकुमार्यादीषत्प्रस्विन्नवदालक्ष्यमा
दिव्यालकावलीविराजितम्, १३
प्रबुद्धमुग्धाम्बुजचारुलोचनं, सविभ्रमभ्
शुचिस्मितं, कोमलगण्डमुन्नसं...
11
उदग्रपीनांस
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भगवान् के दोनों नेत्र तुरन्त खिले हुए कमलों के समान
हैं । उनका दिव्यमंगल विग्रह निर्मल श्याम मेघ के समान
है । वे अत्यन्त उज्ज्वल पीताम्बर धारण किये हैं । वे
निर्मल, अत्यन्त शीतल, [ अत्यन्त कोमल ] स्वच्छ मा
की सी आभा से सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित करते हैं । १२
वे अचिन्त्य, दिव्य, अद्भुत, नित्य-यौवन, स्वभाव एवं
लावण्यमय अमृत के समुद्र हैं । अत्यन्त सुकुमारता के कारण
उनका ललाट कुछ पसीने की बूंदों से युक्त दिखायी देता है
वहाँ तक
मान है । १३
फैली हुई उनकी दिव्य
भगवान् के नेत्र विकसित कोमल कमल के समान
सुन्दर हैं, उनकी भ्रूलता विभ्रम विलास से युक्त है, उनके