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प्रत्यग्रोन्मीलितसरसिज सदृशनयनयुगलं स्वच्छनीलजीमूत-

सङ्काशं प्रत्युज्ज्वलपीतवाससं, स्वया प्रभया प्रतिनिर्मलया

अतिशीतलया ( प्रतिकोमलया ) स्वच्छया मारिणणिक्याभया कृत्स्नं

जगद्भासयन्तम् । १२
 
We
 

 

 
अचिन्त्य दिव्याद्भुत - नित्ययौवन - स्वभावलावण्यमयामृत-

सागरम् अतिसौकुमार्यादीषत्प्रस्विन्नवदालक्ष्यमाणललाटफलक-

दिव्यालकावलीविराजितम्, १३
 

 
प्रबुद्धमुग्धाम्बुजचारुलोचनं, सविभ्रमभ्रु लत रूलतमुज्ज्वलाधरम् ।

शुचिस्मितं, कोमलगण्डमुन्नसं...
 
11
 
... ... ... ॥​
 
उदग्रपीनांस विलम्बि कुण्डलालकावलीबन्धु रकम्बुकन्धरम् ।
 
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भगवान् के दोनों नेत्र तुरन्त खिले हुए कमलों के समान

हैं । उनका दिव्यमंगल विग्रह निर्मल श्याम मेघ के समान

है । वे अत्यन्त उज्ज्वल पीताम्बर धारण किये हैं । वे
अत्यन्त
निर्मल, अत्यन्त शीतल, [ अत्यन्त कोमल ] स्वच्छ मारिणणिक्य

की सी आभा से सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित करते हैं । १२
 

 
वे अचिन्त्य, दिव्य, अद्भुत, नित्य-यौवन, स्वभाव एवं

लावण्यमय अमृत के समुद्र हैं । अत्यन्त सुकुमारता के कारण

उनका ललाट कुछ पसीने की बूंदों से युक्त दिखायी देता है

वहाँ तक
फैली हुई उनकी दिव्य अलकावली शोभाय-

मान है । १३
 
फैली हुई उनकी दिव्य
 

 
भगवान् के नेत्र विकसित कोमल कमल के समान

सुन्दर हैं, उनकी भ्रूलता विभ्रम विलास से युक्त है, उनके