2023-06-05 03:27:18 by Krishnendu
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( ३१ )
नानापुष्पासवास्वादमत्तभृङ्गावलीभिरुद्गीयमानदिव्यगान्धर्वेरणा-
पूरिते चन्दनागरुकर्पू र रदिव्यपुष्पावगा हिमन्दानिलासेव्यमाने, ६
मध्ये पुष्पसञ्चय विचित्रिते महति दिव्ययोगपर्यंयङ्कके अनन्त-
भोगिनि, १०
Po
श्रीमद्वैकुण्ठैश्वर्यादिदिव्यलोकम् आत्मकान्त्या विश्वमाप्या-
ययन्त्या शेषशेषाशनादिसर्वपरिजनं भगवतस्तत्तदवस्थोचितपरि-
चर्यायामाज्ञापयन्त्या शीलरूपगुरगणविलासादिभिरात्मानुरूपया
श्रियासहासीनम्, ११
पंक्तियाँ दिव्य संगीत की ध्वनि से मण्डप को पूर्ण करती हैं ।
चन्दन, अगर कर्पूर और दिव्य पुष्पों की सुगन्ध से युक्त
मन्द-मन्द वायु सेवन करने के लिये प्राप्त रहती है । १
इस आस्थानमण्डप के मध्य में अनन्त शेष विराजमान
हैं । उनके अंक में महान् दिव्य योगपर्यङ्क है जो पुष्पराशि
के संचय से विचित्ररूप से सुशोभित है । १०
उस पर भगवान् श्री देवी के साथ विराजमान हैं ।
श्री देवी का शील, रूप, गुण, विलास आदि भगवान् के अनु-
रूप है । वे श्री देवी श्रीमद् वैकुण्ठ, ऐश्वर्य आदि से युक्त दिव्य-
लोक को तथा विश्व को अपनी कांति से आप्लावित करती
हैं और शेष, विष्वक्सेन, आदि समस्त परिजनों को भगवान्
की सर्वावस्थाओं के अनुरूप सेवा की आज्ञा प्रदान करती
रहती हैं । ११
नानापुष्पासवास्वादमत्तभृङ्गावलीभिरुद्गीयमानदिव्यगान्धर्वे
पूरिते चन्दनागरुकर्पू
मध्ये पुष्पसञ्चय
भोगिनि, १०
Po
श्रीमद्वैकुण्ठैश्वर्यादिदिव्यलोकम् आत्मकान्त्या विश्वमाप्या-
ययन्त्या शेषशेषाशनादिसर्वपरिजनं भगवतस्तत्तदवस्थोचितपरि-
चर्यायामाज्ञापयन्त्या शीलरूपगु
श्रियासहासीनम्, ११
पंक्तियाँ दिव्य संगीत की ध्वनि से मण्डप को पूर्ण करती हैं ।
चन्दन, अगर कर्पूर और दिव्य पुष्पों की सुगन्ध से युक्त
मन्द-मन्द वायु सेवन करने के लिये प्राप्त रहती है । १
इस आस्थानमण्डप के मध्य में अनन्त शेष विराजमान
हैं । उनके अंक में महान् दिव्य योगपर्यङ्क है जो पुष्पराशि
के संचय से विचित्ररूप से सुशोभित है । १०
उस पर भगवान् श्री देवी के साथ विराजमान हैं ।
श्री देवी का शील, रूप, गुण, विलास आदि भगवान् के अनु-
रूप है । वे श्री देवी श्रीमद्
लोक को तथा विश्व को अपनी कांति से आप्लावित करती
हैं और शेष, विष्वक्सेन, आदि समस्त परिजनों को भगवान्
की सर्वावस्थाओं के अनुरूप सेवा की आज्ञा प्रदान करती
रहती हैं । ११