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नानापुष्पासवास्वादमत्तभृङ्गावलीभिरुद्गीयमानदिव्यगान्धर्वेरणा-
पूरिते चन्दनागरुकर्पू र दिव्यपुष्पावगा हिमन्दानिलासेव्यमाने, ६
मध्ये पुष्पसञ्चय विचित्रिते महति दिव्ययोगपर्यंङ्क अनन्त-
भोगिनि, १०
Po
 
श्रीमद्वैकुण्ठैश्वर्यादिदिव्यलोकम् आत्मकान्त्या विश्वमाप्या-
ययन्त्या शेषशेषाशनादिसर्वपरिजनं भगवतस्तत्तदवस्थोचितपरि-
चर्यायामाज्ञापयन्त्या शीलरूपगुरगविलासादिभिरात्मानुरूपया
श्रियासहासीनम्, ११
 
पंक्तियाँ दिव्य संगीत की ध्वनि से मण्डप को पूर्ण करती हैं ।
चन्दन, अगर कर्पूर और दिव्य पुष्पों की सुगन्ध से युक्त
मन्द-मन्द वायु सेवन करने के लिये प्राप्त रहती है । १
 
इस आस्थानमण्डप के मध्य में अनन्त शेष विराजमान
हैं । उनके अंक में महान् दिव्य योगपर्यङ्क है जो पुष्पराशि
के संचय से विचित्ररूप से सुशोभित है । १०
 
उस पर भगवान् श्री देवी के साथ विराजमान हैं ।
श्री देवी का शील, रूप, गुण, विलास आदि भगवान् के अनु-
रूप है । वे श्री देवी श्रीमद् कुण्ठ, ऐश्वर्य आदि से युक्त दिव्य-
लोक को तथा विश्व को अपनी कांति से प्लावित करती
 
हैं और शेष, विष्वक्सेन, आदि समस्त परिजनों को भगवान्
की सर्वावस्थाओं के अनुरूप सेवा की आज्ञा प्रदान करती
रहती हैं । ११