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कोकिलादिभिः कोमलकूजितैराकु लैदिव्योद्यानशतसहस्रं रावृते, ७
 
मरिगमुक्ताप्रवालकृत सोपानदिव्यामलामृतरसोदक-
दिव्याण्डजवरैरतिरमरगीयदर्शनैरतिमनोहर- मधुरस्वरैराकुलैः
श्रन्तः स्थमुक्तामय दिव्यक्क्रीडास्थानोपशोभिर्तदिव्य सौगन्धिक-
वापीशतसहस्रं दिव्यराजहंसावलीविराजतैरावृते, ८
 
निरस्तातिशयानन्दै करसतया चानन्त्याच्च प्रविष्टानुन्मा-
दर्याद्भिः क्रीडोद्द शैविराजिते तत्र तत्र कृतदिव्यपुष्पपर्यङ्कोपशोभिते
 
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आदि दिव्य पक्षियों के कोमल कलरवों से व्याप्त शतसहस्रकोटि
दिव्य उद्यान प्रस्थानमण्डप को घेरे हुए हैं । ७
 
लाखों दिव्य सुगन्धियुक्त बावलियाँ प्रस्थानमण्डप को
घेरे हुए हैं। इन बावलियों में उतरने के लिये मरिण, मुक्ता
और मूंगों की सीढ़ियाँ हैं। इनमें दिव्य निर्मल अमृत रस
भरा है । दिव्यपक्षी, जो देखने में अत्यन्त सुन्दर लगते हैं,
जिनके मधुर स्वर अति मनोहर लगते हैं, इन बावलियों में
विद्यमान रहते हैं । उनके भीतर मुक्तामय दिव्य क्रीड़ास्थान बने
हुए हैं। दिव्य राजहंसों की पंक्तियाँ भी यहाँ रहती हैं।
 
आस्थानमण्डप में कितने ही क्रीडास्थल हैं जो सर्वाधिक
आनन्दैकरसस्वभाव एवं अनन्त होने के कारण प्रवेश करने-
वालों को आनन्दोन्माद से उन्मत्त कर देते हैं । आस्थानमण्डप
के विभिन्न भागों में दिव्य पुष्पों के पर्यंक शोभायमान हैं।
नाना प्रकार के पुष्पों का रसपान कर उन्मत्त भ्रमरों की