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भावैश्वर्यैर्नित्य सिद्धैरनन्तैर्भगवदानुकूल्यैकभोगैः दिव्यपुरुषैर्महा-

त्मभिरापूरिते तेषामपीयत्परिमारगण​म् इयवैदैश्वर्यम् ईदृशस्वभावम्

इति परिच्छेत्तुमयोग्ये, २
 

 
दिव्यावरणशतसहस्त्रावृते दिव्यकल्पकतरूपशोभिते दिव्यो-

द्यानशतसहस्रको टिभिरावृते अतिप्रमाणे दिव्यायतने, ३
 
कस्मि

 
कस्मिंश्
चिद्विचित्रदिव्यरत्नमये दिव्यास्थानमण्डपे दिव्यरत्न-
दिव्यनानारत्नकृतस्थल-

स्तम्भशतसहस्रकोटिभिरुपशोभिते
दिव्यनानारत्नकृतस्थल-
विचित्रिते दिव्यालङ्कारालङ्कृते, ४
 

 
महात्मा पुरुषों से परिपूर्ण है जिनका स्वभाव एवं ऐश्वर्य

सनक, ब्रह्मा, शिव आदि के लिये भी अचिन्त्य है । उन दिव्य

पुरुषों का भोग एकमात्र भगवान् की अनुकूलता ही है। उनका

परिणाम इतना है, ऐश्वर्य इतना है, स्वभाव ऐसा है इत्यादि

बातों का निर्धारण करना भी अशक्य है । २
 

 
यह दिव्यधाम एक लाख दिव्य आवरणों से आवृत है ।

दिव्य कल्पवृक्षों से सुशोभित है। शतसहस्रकोटि दिव्य

उद्यानों से घिरा हुआ है। अति विस्तृत है । दिव्य
आयत​न
युक्त है । ३
 

 
वहाँ एक दिव्य स्थानमण्डप ( सभा भवन ) है जो

विचित्र एवं रत्नमय है । वह शतसहस्रकोटि दिव्य रत्नमय

स्तम्भों से सुशोभित है। वहाँ की भूमि नानाप्रकार के

दिव्य रत्नों से जटित है। वह सभाभवन दिव्य अलंकारों से
 

अलंकृत है । ४