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( २८ )
 
भावैश्वर्यैनित्य सिद्धैरनन्तैर्भगवदानुकूल्यैकभोगैः दिव्यपुरुषर्महा-
त्मभिरापूरिते तेषामपीयत्परिमारगम् इयवैश्वर्यम् ईदृशस्वभावम्
इति परिच्छेत्तमयोग्ये, २
 
दिव्यावररणशतसहस्त्रावते दिव्यकल्पकतरूपशोभिते दिव्यो-
द्यानशतसहस्रको टिभिरावृते अतिप्रमारणे दिव्यायतने, ३
 
कस्मिचिद्विचित्रदिव्यरत्नमये दिव्यास्थानमण्डपे दिव्यरत्न-
दिव्यनानारत्नकृतस्थल-
स्तम्भशतसहस्रकोटिभिरुपशोभिते
विचित्रिते दिव्यालङ्कारालङ्कृते, ४
 
महात्मा पुरुषों से परिपूर्ण है जिनका स्वभाव एवं ऐश्वर्य
सनक, ब्रह्मा, शिव आदि के लिये भी अचिन्त्य है । उन दिव्य
पुरुषों का भोग एकमात्र भगवान् की अनुकूलता ही है। उनका
परिणाम इतना है, ऐश्वर्य इतना है, स्वभाव ऐसा है इत्यादि
बातों का निर्धारण करना भी अशक्य है । २
 
यह दिव्यधाम एक लाख दिव्य आवरणों से आवृत है ।
दिव्य कल्पवृक्षों से सुशोभित है। शतसहस्रकोटि दिव्य
उद्यानों से घिरा हुआ है। अति विस्तृत है । दिव्य न
युक्त है । ३
 
वहाँ एक दिव्य स्थानमण्डप ( सभा भवन ) है जो
विचित्र एवं रत्नमय है । वह शतसहस्रकोटि दिव्य रत्नमय
स्तम्भों से सुशोभित है। वहाँ की भूमि नानाप्रकार के
दिव्य रत्नों से जटित है। वह सभाभवन दिव्य अलंकारों से
 
अलंकृत है । ४