2023-06-04 02:29:34 by Krishnendu
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( २७ )
स्य, महाविभूतेः, श्रीमतश्चरणारविन्दयुगलम् अनन्यात्मसञ्जीव-
नेन तद्गतसर्वभावेन शररगणमनुव्रजेत् ।
(२)
ततश्च प्रत्यहम् आत्मोज्जीवनाथय एवमनुस्मरेत् ।
(३)
चतुर्दशभुवनात्मकमण्डं दशगुरिगणितोत्तरं चावररणसप्तकं समस्तं
कार्यकाररगणजातमतीत्य, १
वर्तमाने परमव्योमशब्दाभिधेये ब्रह्मादीनां वाङ्मनसागोचरे
श्रीमतिबँवैकुण्ठे दिव्यलोके सनक विधिशिवादिभिरष्प्यचिन्त्यस्व-
HI
जिनका भोग है, ज्ञान,किक्रिया ऐश्वर्य आदि भोग सामग्री से
जो नित्य सम्पन्न हैं, जो महावैभवशाली हैं उन श्रियःपति
भगवान् के दोनों चरणकमलों को अनन्यभाव से अपना
जीवनाधार मानकर तथा सम्पूर्ण भाव लगाकर उनकी शरण
ग्रहरण करे ॥२॥
इसके पश्चात् अपने आत्मोज्जीवन के निमित्त प्रतिदिन
इस प्रकार स्मरण करे ॥३॥
इस ब्रह्माण्ड में चौदह भुवन हैं। इसके उत्तरोत्तर दश-
रित सत
गुणित सात आवरण हैं । यह समस्त कार्य-कारण रूप जगत
है । इससे परे है वैकुण्ठधाम । १
परम व्योम इसी का एक नाम है । यह ब्रह्मा आदि की
मन-वारणी के लिये अगोचर है । लक्ष्मी के वैभव से सम्पन्न
यह वैकुण्ठ दिव्य लोक है । यह वैकुण्ठधाम ऐसे
असंख्य दिव्य
स्य, महाविभूतेः, श्रीमतश्चरणारविन्दयुगलम् अनन्यात्मसञ्जीव-
नेन तद्गतसर्वभावेन शर
ततश्च प्रत्यहम् आत्मोज्जीवना
चतुर्दशभुवनात्मकमण्डं दशगु
कार्यकार
वर्तमाने परमव्योमशब्दाभिधेये ब्रह्मादीनां वाङ्मनसागोचरे
श्रीमति
HI
जिनका भोग है, ज्ञान,
जो नित्य सम्पन्न हैं, जो महावैभवशाली हैं उन श्रियःपति
भगवान् के दोनों चरणकमलों को अनन्यभाव से अपना
जीवनाधार मानकर तथा सम्पूर्ण भाव लगाकर उनकी शरण
ग्रह
इसके पश्चात् अपने आत्मोज्जीवन के निमित्त प्रतिदिन
इस प्रकार स्मरण करे ॥३॥
इस ब्रह्माण्ड में चौदह भुवन हैं। इसके उत्तरोत्तर दश-
रित सत
गुणित सात आवरण हैं । यह समस्त कार्य-कारण रूप जगत
है । इससे परे है वैकुण्ठधाम । १
परम व्योम इसी का एक नाम है । यह ब्रह्मा आदि की
मन-वा
यह वैकुण्ठ दिव्य लोक है । यह वैकुण्ठधाम ऐसे