2023-06-04 02:16:57 by Krishnendu
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( २६ )
परमपुरुषं, भगवन्तं, नारायणं, स्वामित्वेन सुहृत्त्वेन
गुरुत्वेन च परिगृह्य, ३
ऐकान्तिकान्तिक
त्यन्तिक - तत्पादाम्बुजद्वयपरिचर्येयैकमनोरथः
तत्प्राप्तये च तत्पादाम्बुज द्वय प्रपत्तेरन्यन्न मे कल्पको टिसहस्र रगारेणापि
साधनमस्तीति मन्वानः, तस्यैव भगवतो नारायरणस्य, अखिल-
सत्त्वदयै कसागरस्य, अनालोचितगुरगाणागुरणाखण्डजनानुकूलामर्याद-
शीलवतः, स्वाभाविकानवधिकातिशयगुरणवत्तया देवतिर्यङ्मनु-
घ्
ष्याद्य खिलजनहृदयानन्दनस्य, श्राआश्रितवात्सल्यैकजलधेः, भक्त-
जनसंश्लेषषैकभोगस्य, नित्यज्ञानक्रियैश्वर्यादिभोगसामग्रोरीसमृद्ध-
-
-
ऐसे परमपुरुष भगवान् नारायण को स्वामी, सुहृत् एवं
गुरु के रूप में ग्रहण कर । ३
( साधक ) उनके दोनों चरणकमलों की ऐकान्तिक एवं
आत्यन्तिक भाव से सम्पन्न परिचर्या ( सेवा ) की अभिलाषा
करे और उस सेवा को प्राप्त करने के लिये उन चरणकमलों.
की शरणागति के सिवा मेरे लिये सहस्र कोटि कल्पों तक भी
दूसरा कोई साधन नहीं है, ऐसा विश्वास करे । जो समस्त
जीवों के प्रति उमड़नेवाली दया के एकमात्र सागर हैं, जो गुरण
अवगुण का विचार किये बिना ही सब लोगों के अनुकूल हैं एवं
असीम शील से सम्पन्न हैं, स्वाभाविक असीम अतिशय गुणों
से युक्त होने के कारण देवता, पशु-पक्षी, मनुष्य आदि समस्त
जीवों के हृदय कोश्राआनन्द प्रदान करने वाले हैं, आश्रितजनों
के प्रति वत्सलता के एकमात्र समुद्र हैं, भक्तजनों से संयोग ही
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परमपुरुषं, भगवन्तं, नारायणं, स्वामित्वेन सुहृत्त्वेन
गुरुत्वेन च परिगृह्य, ३
ऐकान्तिका
तत्प्राप्तये च तत्पादाम्बुज
साधनमस्तीति मन्वानः, तस्यैव भगवतो नाराय
सत्त्वदयै
शीलवतः, स्वाभाविकानवधिकातिशयगु
घ्
ष्याद्य
जनसंश्ले
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ऐसे परमपुरुष भगवान् नारायण को स्वामी, सुहृत् एवं
गुरु के रूप में ग्रहण कर । ३
( साधक ) उनके दोनों चरणकमलों की ऐकान्तिक एवं
आत्यन्तिक भाव से सम्पन्न परिचर्या ( सेवा ) की अभिलाषा
करे और उस सेवा को प्राप्त करने के लिये उन चरणकमलों
की शरणागति के सिवा मेरे लिये सहस्र कोटि कल्पों तक भी
दूसरा कोई साधन नहीं है, ऐसा विश्वास करे । जो समस्त
जीवों के प्रति उमड़नेवाली दया के एकमात्र सागर हैं, जो गु
अवगुण का विचार किये बिना ही सब लोगों के अनुकूल हैं एवं
असीम शील से सम्पन्न हैं, स्वाभाविक असीम अतिशय गुणों
से युक्त होने के कारण देवता, पशु-पक्षी, मनुष्य आदि समस्त
जीवों के हृदय को
के प्रति वत्सलता के एकमात्र समुद्र हैं, भक्तजनों से संयोग ही
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