2023-06-03 15:05:20 by Krishnendu
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( २४ )
च्चारणमात्रावलम्बनेन उच्यमानार्थपरमार्थनिष्ठ मे मनस्त्व-
मेवाद्यैव कारय । (६)
(f)
अपारकरुरणाम्बुधे ! श्रअनालोचितविशेषाशेषलोकशरण्य !
प्ररणतार्तिहर ! प्राआश्रितवात्सल्यैकमहोदधे ! अनवरत विदित-
निखिलभूतजातयाथात्म्य ! सत्यकाम !
सत्यसकंल्प !
च्चारणमात्रावलम्बनेन
मेवाद्यैव कारय ।
श्रा
आपत्सख ! काकुत्स्थ ! श्रीमन् ! नारायरण ! पुरुषोत्तम !
श्रीरङ्गनाथ ! मम नाथ ! नमोऽस्तु ते ।
(७)
इति श्रीभगवद्रामानुजविरचिते गद्यत्रये, द्वितीयं
श्रीरङ्गगद्यौंयं सम्पूर्णम् ।
आज ही उच्यमान अर्थ के परमार्थ ( उपाय और उपेय के
अनुभव) से सम्पन्न बना दीजिये ॥६॥
.
अपार करुणा के सागर, व्यक्ति विशेष का विचार किये
बिना ही सम्पूर्ण जगत को शरण देने वाले शरण्य, शरणागत
के दुःखों को दूर करने वाले, शरणागतवत्सलता के एक मात्र
महा समुद्र, सम्पूर्ण भूतों के यथार्थ स्वरूप का निरन्तर ज्ञान
रखने वाले, सत्य काम, सत्य संकल्प, विपत्ति के एकमात्र
सखा, ककुत्स्थ कुल के गौरव, श्रीमन् नारायण, पुरुषोत्तम
श्रीरङ्गनाथ ! मेरे नाथ ! मैं आपकी शरण हूँ ।
[ शरणागति को आप स्वीकार करें । अथवा सर्वत्र कैंकर्य
प्रदान करें ।
ऐसा ही हो] ॥७॥
च्चारणमात्रावलम्बनेन उच्यमानार्थपरमार्थनिष्ठ मे मनस्त्व-
मेवाद्यैव कारय । (६)
(f)
अपारकरु
प्र
निखिलभूतजातयाथात्म्य ! सत्यकाम !
च्चारणमात्रावलम्बनेन
मेवाद्यैव कारय ।
श्रा
आपत्सख ! काकुत्स्थ ! श्रीमन् ! नाराय
श्रीरङ्गनाथ ! मम नाथ ! नमोऽस्तु ते ।
इति श्रीभगवद्रामानुजविरचिते गद्यत्रये, द्वितीयं
श्रीरङ्गगद्
आज ही उच्यमान अर्थ के परमार्थ ( उपाय और उपेय के
अनुभव) से सम्पन्न बना दीजिये ॥६॥
.
अपार करुणा के सागर, व्यक्ति विशेष का विचार किये
बिना ही सम्पूर्ण जगत को शरण देने वाले शरण्य, शरणागत
के दुःखों को दूर करने वाले, शरणागतवत्सलता के एक मात्र
महा समुद्र, सम्पूर्ण भूतों के यथार्थ स्वरूप का निरन्तर ज्ञान
रखने वाले, सत्य काम, सत्य संकल्प, विपत्ति के एकमात्र
सखा, ककुत्स्थ कुल के गौरव, श्रीमन् नारायण, पुरुषोत्तम
श्रीरङ्गनाथ ! मेरे नाथ ! मैं आपकी शरण हूँ ।
[ शरणागति को आप स्वीकार करें । अथवा सर्वत्र कैंकर्य
प्रदान करें ।
ऐसा ही हो] ॥७॥