2023-06-03 06:35:59 by Krishnendu
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( २१ )
स्वात्मनित्यनियाम्यनित्यदास्यैकरसात्म-स्वभावानुसन्धान-
पूर्वक भगवदनवधिकातिशयस्वाम्यद्य खिल-गुरणगगरगाणानुभवजनिता-
नवधिकातिशय - -प्रीतिकारिताशेषावस्थोचिताशेषशेषतै कर करतिरूप-
नित्य
नित्यकैडूङ्कर्यप्राप्त्युपायभूत क्तिभक्ति - तदुपाय - सम्यज्ज्ञानतदुपाय-
•.
समीचीनक्रिया - तदनुगुरण - सात्विकतास्तिक्यादि - समस्तात्म-
गुरगणविहीनः, - १
-
दुरुत्तरानन्तत द्विपर्यय-ज्ञान क्रियानुगुरगाणानादिपापवासनामहा-
र्णवान्तर्निमग्नः, २
भगवान् की नित्य नियाम्यता और दास्थय भावना की
एकरसता जीवात्मा का स्वभाव है । इस स्वभाव के अनु-
सन्धान (चिन्तन) के साथ भगवान् का इस प्रकार अनुभव
होना चाहिये कि उनके असीम एवं अतिशय स्वामित्व आदि
गुरण समूह का अनुभव असीम अतिशय प्रीति का प्रदाता है ।
इस प्रीति द्वारा समस्त अवस्थाओं के अनुरूप परिपूर्ण शेष-
भावापन्न प्रीतियुक्त नित्यकेंकैंकर्य प्राप्त होता है। ऐसे कैंकर्य
की प्राप्ति का उपाय भक्ति है। इसका साधन है सम्यक् ज्ञान ।
सम्यक् ज्ञान को प्राप्त करने का उपाय है समुचितकिया । यह
क्रिया । यह
क्रिया साधक में सात्विकता, आस्तिकता आदि समस्त आत्म-
गुणों के रहने पर ही सम्भव होती है। किन्तु मैं इन समस्त
आत्मगुणों से रहित हूँ । १
इसके अतिरिक्त विपरीत ज्ञान, क्रिया एवंप्राआत्मगुरणों के
कारण अनादि वासना के पार जाने में अत्यन्त दुस्तर अनन्त
महासागर में डूबा हुआ हूँ । २
स्वात्मनित्यनियाम्यनित्यदास्यैकरसात्म-स्वभावानुसन्धान-
पूर्वक
नवधिकातिशय
नित्य
नित्यकै
•.
समीचीनक्रिया - तदनुगु
गु
-
दुरुत्तरानन्तत
र्णवान्तर्निमग्नः, २
भगवान् की नित्य नियाम्यता और दास्
एकरसता जीवात्मा का स्वभाव है । इस स्वभाव के अनु-
सन्धान (चिन्तन) के साथ भगवान् का इस प्रकार अनुभव
होना चाहिये कि उनके असीम एवं अतिशय स्वामित्व आदि
गु
इस प्रीति द्वारा समस्त अवस्थाओं के अनुरूप परिपूर्ण शेष-
भावापन्न प्रीतियुक्त नित्य
की प्राप्ति का उपाय भक्ति है। इसका साधन है सम्यक् ज्ञान ।
सम्यक् ज्ञान को प्राप्त करने का उपाय है समुचित
क्रिया साधक में सात्विकता, आस्तिकता आदि समस्त आत्म-
गुणों के रहने पर ही सम्भव होती है। किन्तु मैं इन समस्त
आत्मगुणों से रहित हूँ । १
इसके अतिरिक्त विपरीत ज्ञान, क्रिया एवं
कारण अनादि वासना के पार जाने में अत्यन्त दुस्तर अनन्त
महासागर में डूबा हुआ हूँ । २