2023-03-19 15:49:18 by Krishnendu
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निवेदन
गद्यत्रय में स्तोत्रसाहित्य के ऐसे तीन रत्न हैं जिनसे
शरणागति मार्ग के साधकों को प्रकाश मिलता रहा है ।
भगवान् रामानुजाचार्य की इस रसमयी एवं तत्त्वमयी वारणी
की व्याख्या करने के लिये जिन जिन आचार्यों ने लेखनी उठाई
उनमें श्रुतिप्रकाशिकाकार श्री सुदर्शन सूरि, श्री कृष्णपाद
( पेरियवाच्चान् पिल्लै ) तथा प्राचार्यसार्वभौम श्री
वेदान्तदेशिक के नाम उल्लेखनीय हैं ।
भारत की वर्तमान राष्ट्रभाषा हिन्दी के माध्यम से गद्यत्रय
का स्वाध्याय किया जा सके इस उद्देश्य से हिन्दी अनुवाद
के साथ गद्यत्रय प्रकाशित किया जा रहा है। प्रारम्भ में दिये
गये अनुशीलन से गद्यत्रय के रहस्य को सम<flag>झ</flag>ने में सुविधा
होगी। अन्त में दी गई पाठभेदसूची एवं उद्धरणसूची से
ज्ञान के संवर्धन में सहायता मिलेगी ।
वैकुण्ठवासी सेठ श्री मगनीराम जी बाँगड की पुण्यस्मृति
में उनके आचार्य अनन्त श्रीसमलंकृत जगद्गुरु रामानुजाचार्य
उत्तराहोबिलझा<flag>भा</flag>लरियामठाधीश्वर स्वामी श्री बालमुकुन्दाचार्य
महाराज के
नाम से अलंकृत श्री बालमुकुन्दग्रन्थमाला
का प्रारम्भ किया गया है । इस ग्रन्थमाला के सात पुष्प
प्रकाशित हो चुके हैं । आठवें पुष्प के रूप में यह ग्रन्थ
उपस्थित है। शरणागतिमार्ग के अनुरागी इसे अपनाकर
अनुगृहीत करेंगे, ऐसा विश्वास है ।
-सम्पादक
गद्यत्रय में स्तोत्रसाहित्य के ऐसे तीन रत्न हैं जिनसे
शरणागति मार्ग के साधकों को प्रकाश मिलता रहा है ।
भगवान् रामानुजाचार्य की इस रसमयी एवं तत्त्वमयी वा
की व्याख्या करने के लिये जिन जिन आचार्यों ने लेखनी उठाई
उनमें श्रुतिप्रकाशिकाकार श्री सुदर्शन सूरि, श्री कृष्णपाद
( पेरियवाच्चान् पिल्लै ) तथा प्राचार्यसार्वभौम श्री
वेदान्तदेशिक के नाम उल्लेखनीय हैं ।
भारत की वर्तमान राष्ट्रभाषा हिन्दी के माध्यम से गद्यत्रय
का स्वाध्याय किया जा सके इस उद्देश्य से हिन्दी अनुवाद
के साथ गद्यत्रय प्रकाशित किया जा रहा है। प्रारम्भ में दिये
गये अनुशीलन से गद्यत्रय के रहस्य को सम<flag>झ</flag>ने में सुविधा
होगी। अन्त में दी गई पाठभेदसूची एवं उद्धरणसूची से
ज्ञान के संवर्धन में सहायता मिलेगी ।
वैकुण्ठवासी सेठ श्री मगनीराम जी बाँगड की पुण्यस्मृति
में उनके आचार्य अनन्त श्रीसमलंकृत जगद्गुरु रामानुजाचार्य
उत्तराहोबिल
महाराज के
नाम से अलंकृत श्री बालमुकुन्दग्रन्थमाला
का प्रारम्भ किया गया है । इस ग्रन्थमाला के सात पुष्प
प्रकाशित हो चुके हैं । आठवें पुष्प के रूप में यह ग्रन्थ
उपस्थित है। शरणागतिमार्ग के अनुरागी इसे अपनाकर
अनुगृहीत करेंगे, ऐसा विश्वास है ।
-सम्पादक