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॥ श्रीः ॥
 

 
॥श्रीमते रामानुजाय नमः ॥
 

 
श्रीभगवद्रामानुज-विरचित-गद्यत्रये, द्वितीयं
 
mely
 
(9)
 

 
॥ श्रीरङ्गगद्यम् ॥

 
चिदचित्परतत्त्वानां तत्त्वयाथार्थ्यवेदिने ।
 
TE
 

रामानुजाय मुनये नमो मम गरीयसे ॥
 

 
स्वाधीन त्रिविधचेतनाचेतन स्वरूप स्थितिप्रवृत्तिभेदं क्लेश-

कर्माद्यशेषदोषासंस्पृष्टं, --
 

 
स्वाभाविकानवधिकातिशय-ज्ञान-बलैश्वर्य वीर्यशक्तितेजस्सौ-
'शो

शी
ल्यवात्सल्य - मार्दवार्जवसौहार्द - साम्यकारुण्यमाधुर्यगाम्भी-
-
 

 
-
 
[1]

 
 
चित् अचित् एवं परतत्व के यथार्थ तत्त्व के ज्ञाता पूज्यतम

रामानुज मुनि के लिये मेरा नमस्कार है ।
तिल

 
जो बद्ध, मुक्त
 
-
 
और नित्य तीन प्रकार के चेतन तथा

अचेतन के स्वरूप स्थिति एवं प्रवृति को अधीन रखते हैं,

क्लेश, कर्म आदि सम्पूर्ण दोष जिनका स्पर्श नहीं कर पाते, -- १

 
स्वाभाविक, प्रसीम, अतिशय, ज्ञान, बल, ऐश्वर्य, वीर्य,

शक्ति, तेज, सौशील्य, वात्सल्य, मृदुता, सरलता, सौहार्द, समता,

करुणा, माधुर्य, गम्भीरता, उदारता, चतुरता, स्थिरता, धैर्य,