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( १८ )
 

 
इति मयैव ह्य्युक्तम् ॥२३॥
 

 
अतस्त्वं तव तत्त्वतो मज्ज्ञानदर्शनप्राप्तिषु निस्संशयस्सुख-
सी
 

मास्स्व ॥२४॥
 

 
अन्त्यकाले स्मृतिर्या तु तव कंकैंङ्कर्यकारिता ।

तामेनां भगवन्नद्य क्रियमाणां कुरुष्व मे ॥२५॥
 
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इति श्री भगवद्रामानुजविरचिते गद्यत्रये, प्रथमं

शरणागतिगद्यौंयं सम्पूर्णम् ।
 

 
 
 
ये मेरे द्वारा कहा जा चुका है ॥२३॥
 

 
इसलिये तुम यथार्थ रूप से मेरे ज्ञान, दर्शन और प्राप्ति

के विषय में संशय रहित होकर सुख से रहो ॥ २४॥
 
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भगवन् ! आपके कैंकर्य के फलस्वरूप जो स्मृति [अन्तकाल

में होती है उसे आज ही मुझे प्रदान करें ॥२५॥
 
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