2023-05-17 06:55:28 by Krishnendu
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( १७ )
नवधिकातिशय - प्रियमदनुभवस्त्वं
तथाविधमदनुभवजनिता-
नवधिकातिशय - प्रीतिकारिताशेषावस्थोचिता शेषशेषतै कर करतिरूप-
नित्यकिङ्करो भविष्यसि ॥२१॥
-
मा ते भूदत्र संशयः ॥२२॥
सकृदेव
प्रभयं
Simsin
अनृतं नोक्तपूर्ववं मे न च वक्ष्ये कदाचन ।
हवाम
... ... ... ... रामो द्विर्नाभिभाषते ।
सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते ।
अभयं सर्वभूतेभ्यो
ददाम्येतद्व्रतं
मम ॥
मम ॥
सर्वधर्मान्परित्यज्य
मामेकं शरणं व्रज ।
श्र
अहं त्वा सर्वापापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
मेरा अनुभव प्राप्तकर उसके फलस्वरूप असीम, अतिशय प्रीति
के द्वारा समस्त अवस्थाओं के अनुरूप परिपूर्ण शेषभावापत्र
न्न
प्रीति से युक्त नित्य किंकर होगे ॥२१॥
इसमें तुमको किसी प्रकार संशय नहीं होना चाहिये ॥२२॥
मैंने पहिले कभोभी असत्य नहीं कहा और नान आगे कभी कहूंगा ।
राम दो प्रकार की बातें नहीं कहता ।
जो शरणागत एक बार भी 'मैं आपका हूँ', यह कहकर
मुझ से रक्षा-याचना करता है उसे मैं सम्पूर्ण भूतों से निर्भय
कर देता हूँ । यह मेरा व्रत है ।
समस्त धर्मों ( कर्मयोग, ज्ञानयोग एवं भक्तियोग ) को
छोड़कर तुम एकमात्र मेरी शरण में आजाश्रोओ । मैं तुमको
समस्त पापों से मुक्त करदूंदूँगा । शोक न करो ।
।
नवधिकातिशय - प्रियमदनुभवस्त्वं
नवधिकातिशय - प्रीतिकारिताशेषावस्थोचिता
नित्यकिङ्करो भविष्यसि ॥२१॥
-
मा ते भूदत्र संशयः ॥२२॥
सकृदेव
प्रभयं
Simsin
अनृतं नोक्तपूर्
हवाम
... ... ... ... रामो द्विर्नाभिभाषते ।
सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते ।
अभयं सर्वभूतेभ्यो
मम ॥
सर्वधर्मान्परित्यज्य
श्र
अहं त्वा सर्वापापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
मेरा अनुभव प्राप्तकर उसके फलस्वरूप असीम, अतिशय प्रीति
के द्वारा समस्त अवस्थाओं के अनुरूप परिपूर्ण शेषभावाप
प्रीति से युक्त नित्य किंकर होगे ॥२१॥
इसमें तुमको किसी प्रकार संशय नहीं होना चाहिये ॥२२॥
मैंने पहिले क
राम दो प्रकार की बातें नहीं कहता ।
जो शरणागत एक बार भी 'मैं आपका हूँ', यह कहकर
मुझ से रक्षा-याचना करता है उसे मैं सम्पूर्ण भूतों से निर्भय
कर देता हूँ । यह मेरा व्रत है ।
समस्त धर्मों ( कर्मयोग, ज्ञानयोग एवं भक्तियोग ) को
छोड़कर तुम एकमात्र मेरी शरण में आजा
समस्त पापों से मुक्त कर
।