2023-05-16 07:24:32 by Krishnendu
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( १६ )
एवम्भूतोऽसि ।
(१६)
श्रा
आध्यात्मिकाधिभौतिका धिदैविक-दुःख विघ्नगन्धरहितस्त्वं
द्वयमर्थानुसन्धानेन सह सदैवं वक्ता यावच्छरोरीरपातमत्रैव
श्रीर<flag>ङ्ग</flag> सुखमास्स्व ।
(२०)
•
शरीरपातसमये तु केवलं मदोदीययैव दयया प्र प्रअतिप्रबुद्धः,
मामेवावलोकयन्नप्रच्युतपूर्व संस्कारमनोरथः, जीर्णमिव वस्त्रे
रं
सुखेनेमां प्रकृतितिं स्थूलसूक्ष्मरूपां विसृज्य, तदानीमेव मत्प्रसाद-
लब्चधमच्चररणारविन्दयुगलैकान्तिकात्यन्तिक - परभक्तिपरज्ञान-
परमभक्तिकृत - परिपूर्णानवरत - नित्यविशदतमानन्यप्रयोजना-
-
तुम ऐसे हो ॥१६॥
आध्यात्मिक, आधिभौतिक एवंप्राआधिदैविक दुःखों से होने
वाले विघ्नों की गन्ध भी तुम्हें न लगेगी । द्वयमन्त्र के अनुसन्धान
के साथ सदा उच्चारण करते हुए जोवनपर्यन्त तुम यहीं
श्री रंगधाम में ही सुखपूर्वक निवास करो ॥२०॥
शरीरपात ( मृत्यु ) के समय केवल मेरी ही दया से
अत्यन्त बोधसम्पन्न होकर मेरा दर्शन करते हुए, भगवान् हो
मेरे परम प्राप्य हैं इस शास्त्रजन्य अनुभव-संस्कार से प्राप्त
मनोरथ के साथ जीर्णवस्त्र के समान सुखपूर्वक स्थूल और
सूक्ष्म प्रकृति को छोड़कर तत्काल मेरी प्रसन्नता के फलस्वरूप
मेरे युगलचरणारविन्दों की ऐकान्तिक,प्राआत्यन्तिक, परभक्ति,
परज्ञान एवं परमभक्ति के द्वारा परिपूर्ण अविच्छिन्न, नित्य,
विशदतम, अन्यप्रयोजन से रहित, असीम, अतिशय, प्रीतिरूप
एवम्भूतोऽसि ।
श्रा
आध्यात्मिकाधिभौतिका
द्वयमर्थानुसन्धानेन सह सदैवं वक्ता यावच्छ
श्रीर<flag>ङ्ग</flag> सुखमास्स्व ।
•
शरीरपातसमये तु केवलं म
मामेवावलोकयन्नप्रच्युतपूर्व
सुखेनेमां प्रकृ
लब्
परमभक्तिकृत -
-
तुम ऐसे हो ॥१६॥
आध्यात्मिक, आधिभौतिक एवं
वाले विघ्नों की गन्ध भी तुम्हें न लगेगी । द्वयमन्त्र के अनुसन्धान
के साथ सदा उच्चारण करते हुए जोवनपर्यन्त तुम यहीं
श्री रंगधाम में ही सुखपूर्वक निवास करो ॥२०॥
शरीरपात ( मृत्यु ) के समय केवल मेरी ही दया से
अत्यन्त बोधसम्पन्न होकर मेरा दर्शन करते हुए, भगवान् हो
मेरे परम प्राप्य हैं इस शास्त्रजन्य अनुभव-संस्कार से प्राप्त
मनोरथ के साथ जीर्णवस्त्र के समान सुखपूर्वक स्थूल और
सूक्ष्म प्रकृति को छोड़कर तत्काल मेरी प्रसन्नता के फलस्वरूप
मेरे युगलचरणारविन्दों की ऐकान्तिक,
परज्ञान एवं परमभक्ति के द्वारा परिपूर्ण अविच्छिन्न, नित्य,
विशदतम, अन्यप्रयोजन से रहित, असीम, अतिशय, प्रीतिरूप