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(( १४ )
एतदनुगुरण प्रकृतिविशेषसंबद्धोऽपि, एतन्मूलाध्यात्मिकाधि-
-भौतिक धिदैविक सुखदुःख तद्वेतुतदितरोपेक्षरणीय विषयानुभव-
ज्ञानसङ्कोचरूपमच्चरणारविन्द-युगलै कान्तिकात्यन्तिकपरभक्ति-
परज्ञानपरमभक्तिविघ्नप्रतिहतोऽपि, येन केनापि प्रकारेरण द्वय-
वक्ता त्वं, २
केवलं मदीययैव दयया निःशेषविनष्टसहेतुक मच्चररणार-
विन्दयुगलैकान्तिकात्यन्तिकपरभक्तिपरज्ञानपरमभक्तिविघ्नः, ३
niepe
●
-
1000
इस
एवं अहंकार का कारण है अनादि विपरीत वासना जिससे भी
तुम सम्बद्ध हो । इन पाप, अहंकार और वासना के अनुरूप प्रकृति
से भी तुम सम्बद्ध हो। इस प्रकृतिसम्बन्ध के कारण प्राध्या-
त्मिक आधिभौतिक एवं आधिदैविक सुख और दुःख होते हैं ।
सुख और दुःख के अनुभव से, इन सुख दुःख के हेतुभूत
पदार्थों के अनुभव से तथा ऐसे पदार्थों के अनुभव से
जिनसे सुख या दुःख तो नहीं होता किन्तु जो उपेक्षरणीय
विषय अवश्य हैं ज्ञान का संकोच होता है । यह ज्ञान का संकोच
मेरे युगल चरणारविन्दों की ऐकान्तिक प्रात्यन्तिक परभक्ति,
परज्ञान एवं परमभक्ति का विघ्न है जिसने तुम पर आघात
किया है । किन्तु जैसे तैसे तुमने द्वयमन्त्र का उच्चारण कर
लिया है । २
अतः केवल मेरी दया से मेरे चरणारविन्दयुगल की
ऐकान्तिक, आत्यन्तिक, परभक्ति, परज्ञान एवं परमभक्ति
के विघ्न पूर्णतया अपने कारणों के साथ नष्ट होंगे । ३
एतदनुगुरण प्रकृतिविशेषसंबद्धोऽपि, एतन्मूलाध्यात्मिकाधि-
-भौतिक धिदैविक सुखदुःख तद्वेतुतदितरोपेक्षरणीय विषयानुभव-
ज्ञानसङ्कोचरूपमच्चरणारविन्द-युगलै कान्तिकात्यन्तिकपरभक्ति-
परज्ञानपरमभक्तिविघ्नप्रतिहतोऽपि, येन केनापि प्रकारेरण द्वय-
वक्ता त्वं, २
केवलं मदीययैव दयया निःशेषविनष्टसहेतुक मच्चररणार-
विन्दयुगलैकान्तिकात्यन्तिकपरभक्तिपरज्ञानपरमभक्तिविघ्नः, ३
niepe
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1000
इस
एवं अहंकार का कारण है अनादि विपरीत वासना जिससे भी
तुम सम्बद्ध हो । इन पाप, अहंकार और वासना के अनुरूप प्रकृति
से भी तुम सम्बद्ध हो। इस प्रकृतिसम्बन्ध के कारण प्राध्या-
त्मिक आधिभौतिक एवं आधिदैविक सुख और दुःख होते हैं ।
सुख और दुःख के अनुभव से, इन सुख दुःख के हेतुभूत
पदार्थों के अनुभव से तथा ऐसे पदार्थों के अनुभव से
जिनसे सुख या दुःख तो नहीं होता किन्तु जो उपेक्षरणीय
विषय अवश्य हैं ज्ञान का संकोच होता है । यह ज्ञान का संकोच
मेरे युगल चरणारविन्दों की ऐकान्तिक प्रात्यन्तिक परभक्ति,
परज्ञान एवं परमभक्ति का विघ्न है जिसने तुम पर आघात
किया है । किन्तु जैसे तैसे तुमने द्वयमन्त्र का उच्चारण कर
लिया है । २
अतः केवल मेरी दया से मेरे चरणारविन्दयुगल की
ऐकान्तिक, आत्यन्तिक, परभक्ति, परज्ञान एवं परमभक्ति
के विघ्न पूर्णतया अपने कारणों के साथ नष्ट होंगे । ३