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( १० )
 

 
मनोवाक्कायैरनादिकाल-प्रवृत्तानन्ता कृत्य कर रगकरण​​-कृत्या कर र
करण​
भगवदपचार-भागवतापचारासह्यापचाररूप
 
- नानाविधानन्ताप-

चारान् आरब्धकार्यान् अनारब्धकार्यान् कृतान् क्रियमाणान्

करिष्यमाणांश्च सर्वानशेषतः क्षमस्व ।
 
(११)
 
प्र

 
नादिकालप्रवृत्तं विपरीतज्ञानम् श्रात्मविषयं कृत्स्नजगद्वि-

षयं च विपरीतवृत्तं चाशेषविषयमद्यापि वर्तमानं वर्तिष्यमाणं

च सर्वं क्षमस्व ।
 
(१२)
 

 
मदीयानादिकर्मप्रवाहप्रवृत्तां भगवत्स्वरूपतिरोधानकरों
 
मन, वार
रीं
 
 
मन, वा
णी और शरीर द्वारा अनादिकाल से मेरे किये

हुये असंख्य न करने योग्य काम करने, करने योग्य काम न

करने, भगवदपचार, भागवतापचार, असह्यापचार रूप अनेक

प्रकार के अगरिणणित अपचारों को जिन्होंने अपना फलभोग दान

प्रारम्भ कर दिया है अथवा नहीं किया है, जो किये
जा चुके
हैं, किये जा रहे हैं अथवा
किये जाने वाले हैं आप विशेष
रूप से क्षमा करें ॥११॥
 
वाले
 
विशेष
 
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आत्मा तथा सम्पूर्ण जगत के विषय में जो विपरीत ज्ञान

मुझमें अनादिकाल से चला रहा है, स्वविषयक विपरीत

वृत्त, परविषयक विपरीत वृत्त, जो आज भी वर्तमान है तथा

आगे भी होने वाला है उस सब को आप क्षमा करें ॥१२॥
 
NOR
 

 
मेरे अनादि कर्मप्रवाह के कारण जिसकी प्रवृति हुई है,

जो भगवान् के स्वरूप को छिपाने वाली है, विपरीत ज्ञान की