2023-05-06 08:53:20 by Krishnendu
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( ८ )
निखिलजगदाधार ! अखिलजगत्स्वामिन् !श्रअस्मत्स्वामिन् !
सत्यकाम ! सत्यसङ्कल्प ! सकलेतरविलक्षरण ! अर्थिकल्पक !
आपत्सख ! श्रीमन् ! नारायण !प्रअशरण्यशरण्य !! २३-३६
अनन्यशरणः त्वत्पादारविन्दयुगलं शररगणमहं प्रपद्ये । ( ५ )
अत्र द्वयम् । (६)
अत्र द्वयम् ।
पितरं मातरं दारानन् पुत्रान्बन्धून्सखीन्गुरुन् ।
रत्नानि धनधान्यानि क्षेत्रारिगणि च गृहारिगणि च ॥
सर्वधर्मांश्च संत्यज्य सर्वकामांश्च साक्षरान् ।
लोकविक्रान्तचरणौ शरणं तेऽब्रजं विभो ॥
(७)
आप सम्पूर्ण जगत के स्वामी हैं। आप मेरे स्वामी हैं ।
सत्यकाम और सत्य संकल्प हैं । अपने अतिरिक्त समस्त
पदार्थों से आप विलक्षण हैं। आप याचकों के लिये कल्पवृक्ष
हैं, आपत्ति में सहायक हैं । लक्ष्मी के स्वामी हैं, आप
नारायण हैं। जिनके लिये कहीं भी शरण नहीं है उनको भी
शरण देने वाले हैं। २३-३६
मैं अनन्य शरण आपके चरणकमलों की
शरण ग्रहण
करता हूँ । ॥५॥
यह द्वय मन्त्र की व्याख्या है ॥६॥
शरण ग्रहरण
विभो ! पिता, माता, पत्नी, पुत्र, बन्धु, सखा, गुरु, रत्न,
धन-धान्य, क्षेत्र, गृह, सारे धर्म अर्थात् समस्त साधन और
साध्य, तथा आत्मानुभव पर्यन्त समस्त कामनाओं को त्याग
निखिलजगदाधार ! अखिलजगत्स्वामिन् !
सत्यकाम ! सत्यसङ्कल्प ! सकलेतरविलक्ष
आपत्सख ! श्रीमन् ! नारायण !
अनन्यशरणः त्वत्पादारविन्दयुगलं शर
अत्र द्वयम् । (६)
अत्र द्वयम् ।
पितरं मातरं दारा
रत्नानि धनधान्यानि क्षेत्रा
सर्वधर्मांश्च संत्यज्य सर्वकामांश्च साक्षरान् ।
लोकविक्रान्तचरणौ शरणं तेऽब्रजं विभो ॥
आप सम्पूर्ण जगत के स्वामी हैं। आप मेरे स्वामी हैं ।
सत्यकाम और सत्य संकल्प हैं । अपने अतिरिक्त समस्त
पदार्थों से आप विलक्षण हैं। आप याचकों के लिये कल्पवृक्ष
हैं, आपत्ति में सहायक हैं । लक्ष्मी के स्वामी हैं, आप
नारायण हैं। जिनके लिये कहीं भी शरण नहीं है उनको भी
शरण देने वाले हैं। २३-३६
मैं अनन्य शरण आपके चरणकमलों की
करता हूँ । ॥५॥
यह द्वय मन्त्र की व्याख्या है ॥६॥
शरण ग्रहरण
विभो ! पिता, माता, पत्नी, पुत्र, बन्धु, सखा, गुरु, रत्न,
धन-धान्य, क्षेत्र, गृह, सारे धर्म अर्थात् समस्त साधन और
साध्य, तथा आत्मानुभव पर्यन्त समस्त कामनाओं को त्याग