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( ७ )
सत्यकाम ! सत्यसङ्कल्प ! परब्रह्मभूत ! पुरुषोत्तम !
महाविभूते ! श्रीमन् ! नारायण ! श्रीवैकुण्ठनाथ ! ११-१८
अपारकारुण्य - सौशल्य - वात्सल्यौदार्येश्वर्य - सौन्दर्य-
महोदधे ! १६gy18150
अनालोचित विशेषाशेषलोकशरण्य ! प्ररणतात्तिहर! आश्रि-
तवात्सल्यैकजलधे ! २०-२२
ong F
अनवरत विदितनिखिलभूतजातयाथात्म्य ! श्रशेषचराचर-
भूत निखिलनियमन निरत ! अशेष चिदचिद्वस्तुशेषिभूत !
सत्यकाम, सत्यसंकल्प, परब्रह्मस्वरूप, पुरुषोत्तम
महावैभवसम्पन्न श्रीमान्, नारायण और श्रीवैकुण्ठधाम के
नाथ हैं । ११-१८
WIS
करुणा, सुशीलता, वत्सलता, उदारता,
ऐश्वर्य एवं सुन्दरता के महासमुद्र हैं । १६
गुरग विशेष का विचार किये बिना आप सम्पूर्ण जगत
को शरण देने के लिये प्रस्तुत हैं, शरणागत के समस्त दुःखों
को दूर करने वाले हैं, शरणागतवत्सलता के एकमात्र
समुद्र हैं । २०-२२
आपको सम्पूर्णभूतों के यथार्थ स्वरूप का निरन्तर ज्ञान
रहता है। सम्पूर्ण चेतनाचेतन जगत की समस्त क्रियाओं के
नियमन करने में आप संलग्न रहते हैं। आप समस्त चेतना-
चेतन पदार्थों के शेषी हैं तथा सम्पूर्ण जगत के आधार हैं ।
सत्यकाम ! सत्यसङ्कल्प ! परब्रह्मभूत ! पुरुषोत्तम !
महाविभूते ! श्रीमन् ! नारायण ! श्रीवैकुण्ठनाथ ! ११-१८
अपारकारुण्य - सौशल्य - वात्सल्यौदार्येश्वर्य - सौन्दर्य-
महोदधे ! १६gy18150
अनालोचित विशेषाशेषलोकशरण्य ! प्ररणतात्तिहर! आश्रि-
तवात्सल्यैकजलधे ! २०-२२
ong F
अनवरत विदितनिखिलभूतजातयाथात्म्य ! श्रशेषचराचर-
भूत निखिलनियमन निरत ! अशेष चिदचिद्वस्तुशेषिभूत !
सत्यकाम, सत्यसंकल्प, परब्रह्मस्वरूप, पुरुषोत्तम
महावैभवसम्पन्न श्रीमान्, नारायण और श्रीवैकुण्ठधाम के
नाथ हैं । ११-१८
WIS
करुणा, सुशीलता, वत्सलता, उदारता,
ऐश्वर्य एवं सुन्दरता के महासमुद्र हैं । १६
गुरग विशेष का विचार किये बिना आप सम्पूर्ण जगत
को शरण देने के लिये प्रस्तुत हैं, शरणागत के समस्त दुःखों
को दूर करने वाले हैं, शरणागतवत्सलता के एकमात्र
समुद्र हैं । २०-२२
आपको सम्पूर्णभूतों के यथार्थ स्वरूप का निरन्तर ज्ञान
रहता है। सम्पूर्ण चेतनाचेतन जगत की समस्त क्रियाओं के
नियमन करने में आप संलग्न रहते हैं। आप समस्त चेतना-
चेतन पदार्थों के शेषी हैं तथा सम्पूर्ण जगत के आधार हैं ।