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शेषाशनग रुडप्रमुखनानाविधानन्तपरिजनपरिचारिकापरिचरित-

रणयुगल
 
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परमयोगिवाङ्मनसापरिच्छेद्यस्वरूपस्वभावस्वाभिमत वि-
वि-
विधविचित्रानन्तभोग्यभोगोपकरणभोगस्थानसमृद्धानन्ताश्चर्यान-

न्तमहाविभवानन्त परिमाणनित्यनिरवद्यनिरतिशय वैकुण्ठनाथ !

 
स्वसङ्कल्पानुविधायिस्वरूप- स्थितिप्रवृत्ति स्वशेषतैकस्वभाव-

प्रकृति -पुरुषकालात्मक विविध विचित्रानन्तभोग्यभोक्तृवर्गभोगोप-

करणभोगस्थान रूप निखिलजगदुदय विभवलयलील ! १०
 
गर

 
णों से सम्पन्न हैं ऐसे शेष, विष्वक्सेन, गरुड आदि
अनेक
प्रकार के अनन्त परिजन एवं परिचारिकायें आपके चरण-

कमलों की परिचर्या करती हैं ।
 

 
जिसका स्वरूप एवं स्वभाव परमयोगियों के वाणी और

मन से परे है, जो आपके अभिमत विविध विचित्र अनन्त

भोग्य, भोगोपकरण एवं भोगस्थानों से सम्पन्न है, जो अनन्त

आश्चर्यमय, अनन्त महा वैभव से सम्पन्न, अनन्त विस्तारयुक्त

नित्य निरवद्य एवं निरतिशय है ऐसे वैकुण्ठ के
आप
स्वामी हैं ।
 

 
जिसका स्वरूप, स्थिति एवं प्रवृत्ति आपके संकल्पानुसार

है, आपकी शेषता जिसका स्वभाव है, ऐसे प्रकृति, पुरुष और

काल रूप विविध विचित्र अनन्त भोग्य, भोक्तृ​ वर्ग, भोगो-

पकरण, एवं भोगस्थानरूप सम्पूर्ण जगत की सृष्टि, स्थिति

एवं प्रलय आपकोकी लीला है । १०