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निरतिशयौज्ज्वल्यसौन्दर्य सौगन्ध्यसौकुमार्यलावण्ययौवनाद्यनन्त-
पुर

गु
णनिधिदिव्यरूप ! २
 

 
स्वाभाविकानवधिकातिशय - ज्ञान - बलैश्वर्यवीर्यशक्ति तेज-

 

स्सौशील्यवात्सल्य-मार्दवार्जवसौहार्द-साम्यकारुण्यमाधुर्यगाम्भी-

र्
यौदार्य चातुर्य- स्थैर्यधैर्य शौर्य पराक्रमसत्यकामसत्यसङ्कल्पकृतित्व-

कृतज्ञताद्य सङ्ख्येयकल्याणगुण​गरगौणौघमहार्णव ! ३
 
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स्वोचित विविधविचित्रानन्ताश्चर्य-नित्यनिरवद्य निरतिशय-
निरतिशय-
सुगन्धनिरतिशय सुखस्पर्श निरतिशयौज्ज्वल्य किरीटमकुटचूडाव-

तंसमकरकुण्डलग्रंरैवेयकहारकेयूरकटक श्रीवत्सकौस्तुभमुक्तादामो-

 
 
ज्ज्वल्य, सौन्दर्य, सौगन्ध्य, सौकुमार्य, लावण्य, यौवन,
श्रा

दि अनन्त गुणों से युक्त है । २
 

 
आप स्वाभाविक असीम अतिशय ज्ञान, बल, ऐश्वर्य,

वीर्य, शक्ति, तेज, सौशील्य, वात्सल्य, मार्दव, (मृदुता) आर्जव,

(ऋजुता) सौहार्द, साम्य, कारुण्य, माधुर्य, गाम्भीर्य, औदार्य,

चातुर्य, स्थैर्य, धैर्य, शौर्य पराक्रम, सत्यकाम, सत्यसंकल्प,

कृतित्व (उपकारिता) कृतज्ञता आदि असंख्य कल्याण गुण-

समूह के महासागर हैं । ३
 
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आप अपने योग्य, विविध, विचित्र, अनन्त, श्राश्चर्यमय,

नित्य, निर्मल, निरतिशय सुगंध, निरतिशय सुखस्पर्श, निरतिशय
नौ

ज्ज्वल्य से युक्त किरोरीट, मुकुट, चूड़ामणि, मकराकृत कुण्डल,

कण्ठहार, केयूर ( भुजबन्ध ) कटक ( कंगन) श्रीवत्सचिन्ह,