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( ३ )
 

 
प्रीतिकारिता शेषावस्थोचिता शेषशेषतं करतिरूपतैकरतिरूप - नित्यकैडूङ्कर्य-

प्राप्त्यपेक्षया पारमार्थिकी भगवच्चरणारविन्दशरणागतिर्यथा-

वस्थिता अविरतास्तु मे ।
अस्तु ते
 
(२)
 

 
अस्तु ते ।
(३)
 

 
तयैव सर्वं सम्पत्स्यते ।
(४)
 
तयैव सर्वं सम्पत्स्यते ।
 

 
अखिल हेयप्रत्यनीक कल्याणैकतान स्वेतरसमस्तवस्तु-

विलक्षण अनन्तज्ञानानन्दै कस्वरूप ! १
 

 
स्वाभिमतानुरूपैकरूपाचिन्त्य - दिव्याद्भुत - नित्यनिरव
 
द्य​-
 

 
 
एवं अतिशय प्रीति के द्वारा समस्त अवस्थाओं के अनुरूप

परिपूर्ण शेषभावापन्न प्रीतिरूप नित्यकैंकर्य की प्राप्ति होती

है । यह नित्यकैंकर्य मुझे अपेक्षित है इसलिये भगवान् के

चरणारविन्द की शरणागति, जो पारमार्थिक है निरन्तर यथार्थ

रूप में मुझे प्राप्त हो ॥२॥
 

 
तथास्तु । भगवान् की शरणागति तुम्हें प्राप्त हो ॥३॥

उस शरणागति से ही सब कुछ प्राप्त हो जावेगा ॥४॥
 

 
आप
समस्त हेय गुरगोंणों से रहित हैं। ग्राप समस्त ल्या

गुणों के आकर हैं। अपने से भिन्न समस्त पदार्थों से आप

विलक्षण हैं, अनन्त ज्ञान एवं आनन्द के एक स्वरूप हैं । १
 

 
आपका दिव्यरूप आपके अभिमत एवं अनुरूप है, एक

रूप, अचिन्त्य, दिव्य, अद्भुत, नित्य, दोषरहित, निरतिशय,