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( २ )
 
भगवन्नारायणाभिमतानुरूप स्वरूपरूपगुणविभवैश्वर्यशीला-
द्यनवधिकातिशयासङ्ख्यकल्या रणगुरणगरणां, पद्मवनालयां,
भगवतीं, श्रियं, देवीं, नित्यानपायिनीं, निरवद्यां देवदेवदिव्य-
महिषोम्, अखिलजगन्मातरम्, प्रस्मन्मातरम् शरण्यशरण्याम्
अनन्यशररण: शररणमहं प्रपद्ये ।
 
(१)
 
पारमार्थिक भगवच्चररणारविन्द युगलै कान्तिकात्यन्तिकपर-
भक्तिपरज्ञानपरमभक्तिकृत- परिपूर्णानवरतनित्यविशदतमानन्य-
प्रयोजनानवधिकातिशय प्रियभगवदनुभवजनितानवधिकातिशय-
जो भगवान् नारायण के अभिमत और अनुरूप स्वरूप,
रूप, गुण, वैभव, ऐश्वर्य एवं शील आदि असीम, अतिशय एवं
असंख्य कल्याणगुणों के समुदाय से युक्त हैं, जिनका कमलवन
में निवास है, जो निरन्तर भगवान् के साथ रहती हैं,
जो समस्त दोषों से रहित हैं, जो देवदेव नारायण की दिव्य
महिषी हैं, जो सम्पूर्ण जगत की माता हैं, हमारी माता हैं, सर्व-
लोकशरण्य भगवान् जिनके शरण्य नहीं हो सके ऐसे
अशरण को शरण देने वाली उन भगवती श्री देवी की
मैं अनन्यशरण शरण ग्रहरण करता हूँ ॥१॥
 
भगवान् के युगल चरणारविन्द परमार्थ हैं, उनकी
ऐकान्तिक एवं आत्यन्तिक अर्थात् नित्ययुक्त, पर भक्ति, परज्ञान
एवं परमभक्ति के द्वारा परिपूर्ण, अनवरत (अविच्छिन्न) नित्य,
विशदतम, अन्य प्रयोजन से रहित, असीम अतिशय प्रोति -
रूपी भगवदनुभव होता है । इसके फलस्वरूप असीम