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और इसके पश्चात् उपाय और उपेय के रूप में लक्ष्मी समेत
नारायण, यह व्यवस्था है । गद्यत्रय में 'श्रीमन्' इस व्यवस्था
का द्योतक है । उपाय और उपेय दोनों का वर्णन गद्यत्रय में
है । शरणागति के अंगों का संकेत भी इसमें मिलता है ।
(१) आनुकूल्यसंकल्प, (२) प्रातिकूल्यवर्जन, (३) कार्पण्य
(४) महाविश्वास, (५) गोप्तृत्ववरण और ( ६ ) आत्मनिवेदन
गद्यत्रय से गतार्थ हैं । स्वनिष्ठा के साथ साथ उक्तिनिष्ठा की
भी चर्चा इसमें है । इन्हीं कारणों से शरणागति की साधना
में शरणागति गद्य का उपयोग किया जाता है । और शरणा-
गति के पश्चात् शरणागति मार्ग के साधक के लिये ये तीनों
गद्य नित्य स्मरणीय हैं ।