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( ब
 
)
 

 
५. मुक्त अवस्था में जो भगवदनुभव होता है उसमें

निरन्तर संयोग की अवस्था रहती है । इस दृष्टि से परभक्ति

का अर्थ होता है दर्शन की कामना, परज्ञान का संयोग और

परमभक्ति का वियोग को सहन न करने की स्थिति ।
 
शरणागति
 

 
शरणागति
 
साधन–- परमपुरुषार्थंभूत मोक्ष प्रथात् नित्यविभूति में

भगवदनुभव तथा भगवान् का नित्य कैंकर्य प्राप्त करने के दो

साधन हैं-- ( १ ) भक्ति और ( २) शरणागति । श्रीरंगगद्य के

द्वितीय वाक्य से प्रकट होता है कि सात्त्विकता, आस्तिकता

आदिगुणों के कारण साधक कर्मयोग में प्रवृत्त होता है ।

कर्मयोग की समुचित क्रिया के द्वारा ज्ञानयोग का द्वार खुलता

है । ज्ञानयोग के सम्यक् ज्ञान से भक्तियोग में प्रवृत्ति होती है ।

जो कर्मयोग, कर्मयोग से ज्ञ योग और ज्ञानयोग और ज्ञानयोग से भक्तियोग की

साधना में समर्थ नहीं है उनके लिये शरणागति का साधन है ।

 
शरणागति का आदेश-
- भगवान् श्री राम ने रामायण में

तथा भगवान् श्री कृष्ण ने गीता में जिन शब्दों के द्वारा

शरणागति का आदेश दिया है वे शब्द शरणागतिगद्य के

२३ वें वाक्य में भगवान् के श्रीमुख से पुनः प्रकट हुए हैं-
शरणागति का आदेश-

शपथ के साथ ।
 

 
शरणागति की साधना -- शरणागति मार्ग में पहिले

लक्ष्मी की शरणागति, तत्पश्चात् नारायण की शरणागति की

जाती है । शरणागतिगद्य में यही क्रम है । पुरुषकार लक्ष्मी का