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पाप
 
-- पाप के पाँच रूप हैं- प्रकृत्यकरण, कृत्याकरण, भगवद -

पचार, भागवतापचार और सह्यापचार ।
 

 
१. प्रअकृत्यकरण -- निषिद्ध आचरण जैसे हिंसा, असत्य,

चोरी, व्यभिचार आदि ।
 

 
२. कृत्याकरण — शास्त्रविहित सन्ध्यावन्दन, तर्परम

आदि कर्मों को न करना ।
 

 
३. भगवदपचार -- भगवान् के अपराध जैसे भगवान्.

की सत्ता पर अविश्वास, अवतारों में प्राकृतिक बुद्धि,

भगवान् की आज्ञाओं का उल्लंघन ग्रादि ।
 

 
४. भागवतापचार - भागवतों का अपराध जैसे, भाग-

वतों का अपमान, उनकी उत्कृष्टता को सहन न

करना आदि ।
 
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५. असह्यापचार — असहनीय अपराध जैसे, भगवान्

और भागवतों से अकारण द्वेष, उनकी निन्दा

करना आदि ।
 

 
अहंकार –- देहात्म भ्रम, यह विपरीत ज्ञान का एक प्रकार है ।

जगत के विषय में भ्रम, यह विपरीत ज्ञान का

दूसरा प्रकार है ।
 

 
वासना –- पाप करने के लिये प्रेरित करने वाली रुचि ।
 

 
त्रिविध ताप — प्राध्यात्मिक,
 
आधिदैविक और आधिभौतिक ।

आध्यात्मिक ताप दो
प्रकार के होते हैं -