2023-04-08 05:16:38 by Krishnendu
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( न )
पाप
-- पाप के पाँच रूप हैं- प्रअकृत्यकरण, कृत्याकरण, भगवद -
पचार, भागवतापचार और असह्यापचार ।
१.प्रअकृत्यकरण -- निषिद्ध आचरण जैसे हिंसा, असत्य,
चोरी, व्यभिचार आदि ।
२. कृत्याकरण — शास्त्रविहित सन्ध्यावन्दन, तर्परम
ण
आदि कर्मों को न करना ।
३. भगवदपचार -- भगवान् के अपराध जैसे भगवान्.
की सत्ता पर अविश्वास, अवतारों में प्राकृतिक बुद्धि,
भगवान् की आज्ञाओं का उल्लंघनग्राआदि ।
४. भागवतापचार - भागवतों का अपराध जैसे, भाग-
वतों का अपमान, उनकी उत्कृष्टता को सहन न
करना आदि ।
1>
५. असह्यापचार — असहनीय अपराध जैसे, भगवान्
और भागवतों से अकारण द्वेष, उनकी निन्दा
करना आदि ।
अहंकार –- देहात्म भ्रम, यह विपरीत ज्ञान का एक प्रकार है ।
जगत के विषय में भ्रम, यह विपरीत ज्ञान का
दूसरा प्रकार है ।
वासना –- पाप करने के लिये प्रेरित करने वाली रुचि ।
त्रिविध ताप —प्राआध्यात्मिक,
आधिदैविक और आधिभौतिक ।
आध्यात्मिक ताप दो
प्रकार के होते हैं -
पाप
पचार, भागवतापचार और असह्यापचार ।
१.
चोरी, व्यभिचार आदि ।
२. कृत्याकरण — शास्त्रविहित सन्ध्यावन्दन, तर्प
आदि कर्मों को न करना ।
३. भगवदपचार -- भगवान् के अपराध जैसे भगवान्.
की सत्ता पर अविश्वास, अवतारों में प्राकृतिक बुद्धि,
भगवान् की आज्ञाओं का उल्लंघन
४. भागवतापचार - भागवतों का अपराध जैसे, भाग-
वतों का अपमान, उनकी उत्कृष्टता को सहन न
करना आदि ।
1>
५. असह्यापचार — असहनीय अपराध जैसे, भगवान्
और भागवतों से अकारण द्वेष, उनकी निन्दा
करना आदि ।
अहंकार –- देहात्म भ्रम, यह विपरीत ज्ञान का एक प्रकार है ।
जगत के विषय में भ्रम, यह विपरीत ज्ञान का
दूसरा प्रकार है ।
वासना –- पाप करने के लिये प्रेरित करने वाली रुचि ।
त्रिविध ताप —
आध्यात्मिक ताप दो