This page has been fully proofread once and needs a second look.

( द )
 

 
६. दिव्यधाम का केन्द्र है दिव्य आयतन और दिव्य प्रयतन
आयतन
का केन्द्र है दिव्य स्थान मण्डप । इस मण्डप के मध्य

में दिव्ययोग पर्यङ्क है जहाँ अनन्त शेष पर शेपी भगवान्

के पररूप का साक्षात्कार होता है ।
 

७.
 
इस दिव्यधाम में अनन्त परिजन एवं परिचारिकायें हैं

जिनमें शेष, विष्वक्सेन एवं गरुड प्रधान हैं। परिजनों में

उल्लेखनीय हैं पार्षद, गरगनायक और द्वारपाल तथा परि-

चारिकाओं में चामरहस्ता देवियाँ ।
 

 
तात्त्विकदृष्टि से विचार करने पर ज्ञात होता है कि अनन्त

शेष सिंहासन, शय्या, आसन, पादुका, वस्त्र, तकिया आदि रूपों

में अपने शेषभाव को प्रकट करते हैं। शेष ज्ञान और बल के

प्रतीक हैं । गरुड़ वाहन, ध्वज, वितान एवं व्यजन के रूप में

अपने दास्यभाब को प्रकट करते हैं। वह वेदमय हैं ।

विष्वक्सेन दण्डधर और सेनापति हैं। परिजनों में जो नौ

चामरहस्ता देवियाँ, आठ द्वारपाल और आठ गणनायक हैं वे

भगवान् के विभिन्न गुणों को अभिव्यक्त करते हैं ।
 

 
शरणागत
 
-
 

 
चेतनाचेतन –- श्रीरङ्गगद्य के पहिले तथा श्रीवैकुण्ठ गद्य के

दूसरे वाक्य के प्रथम पद में बताया गया है कि त्रिविध चेतन

और अचेतन का स्वरूप, स्थिति और प्रवृत्ति भगवान् के अधीन

है । तीन प्रकार के चेतन हैं - (१) नित्य, (२) मुक्त और

(३) बद्ध । नित्य वे हैं जो भगवान् की नित्यविभूति में सदा से

परिजन भाव में उपस्थित हैं। मुक्त वे हैं जो कर्मबन्धन एवं