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( त )
 

 
प्राप्य ये तीनों रूप लक्ष्मी के हैं। शरणा-

गतिगद्य में सर्वप्रथम उनकी ही शरणागति

की गई है । शरणागति गद्य के ५ बें

वाक्य में छटा सम्बोधन लक्ष्मी से ही

सम्बद्ध है । इस सम्बोधन में भगवान् को

श्रीवल्लभ कहने के पश्चात् अगले सम्बोधन

में उनको भूमि नीला नायक कहा गया

है। वैकुण्ठगद्य के चौथे वाक्य में बताया

गया है कि लक्ष्मी वैकुण्ठधाम को अपनी

दृष्टि से प्लावित करती हैं तथा समस्त

परिजनों को सेवा की आज्ञा प्रदान

करती हैं ।
 

 
ध्यान रहे कि श्रीदेवी, भूदेवी और नीलादेवी ये तीन

रूप क्रमशः भगवान् की दया, क्षमा और उदारता को विशेष-


तया प्रकट करते हैं ।
 

 
लीलाविभूति –- यह सम्पूर्ण जगत भगवान् की लीला-

विभूति है । शरणागतिगद्य के ५ वें वाक्य के १० वें सम्बोधन

से इसकी ये विशेषतायें प्रकट होती हैं-
-
 

१. इस जगत का स्वरूप, स्थिति और प्रवृत्ति भगवान् के

संकल्प के अधीन है ।
 

२.
 
यह जगत् भगवान् का शेषभूत है ।
 

३. इस जगत् में तीन धारायें हैं- जड़ प्रकृति, काल और चेतन
 

जीवात्मा