2023-03-29 18:33:43 by Krishnendu
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( ढ )
१०. आर्जव -- ऋजुता भगवान् का गुरण है । उनके मन वारणी
और क्रिया में एकरूपता रहती है ।
११. सौहार्द -- भगवान् समस्त प्राणियों के सुहृद हैं । सब का
हित चाहना उनका स्वभाव है ।
-
१२. साम्य –- जाति, गुण, अवस्था, वृत्ति आदि के तारतम्य
की चिन्ता न
कर भगवान् समस्त प्राणियों को
समान रूप से आश्रय प्राश्रय प्रदान करते हैं ।
१३. कारुण्य -- भगवान् दया के समुद्र हैं । विना किसी प्रयो-
जन के वे दूसरों के दुःखों को दूर करने की
इच्छा रखते हैं ।
१४. माधुर्य -- मधुरता भगवान् में सदा रहती है। वे सदा
रसरूप हैं ।
१५. गाम्भीर्य –- भगवान् स्वभाव से गम्भीर हैं ।
१६.श्रौऔदार्य -- प्रत्युपकार की कोई इच्छा न रखकर भगवान्
देते हैं। अधिक से अधिक देकर भी कभी तृप्त
बैंकक
नहीं होते !
१७. चातुर्य
प्रा -- आश्रितजनों की शंकाओं तथा दोषों के दूर
करने में भगवान् चतुर हैं ।
१८. स्थैर्य — अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करने में वे कभी
विचलित नहीं होते। स्थिरता उनमें सदा
रहती है ।
१९.
धैर्य – कठिन से कठिन परिस्थिति में भी वे अपनी प्रतिज्ञा
से विचलित नहीं होते ।
१०. आर्जव -- ऋजुता भगवान् का गु
और क्रिया में एकरूपता रहती है ।
११. सौहार्द -- भगवान् समस्त प्राणियों के सुहृद हैं । सब का
हित चाहना उनका स्वभाव है ।
-
१२. साम्य –- जाति, गुण, अवस्था, वृत्ति आदि के तारतम्य
की चिन्ता न
समान रूप से आश्रय प्
१३. कारुण्य -- भगवान् दया के समुद्र हैं । विना किसी प्रयो-
जन के वे दूसरों के दुःखों को दूर करने की
इच्छा रखते हैं ।
१४. माधुर्य -- मधुरता भगवान् में सदा रहती है। वे सदा
रसरूप हैं ।
१५. गाम्भीर्य –- भगवान् स्वभाव से गम्भीर हैं ।
१६.
देते हैं। अधिक से अधिक देकर भी कभी तृप्त
बैंकक
१७. चातुर्य
प्रा
करने में भगवान् चतुर हैं ।
१८. स्थैर्य — अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह करने में वे कभी
विचलित नहीं होते। स्थिरता उनमें सदा
रहती है ।
१९.
से विचलित नहीं होते ।