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( ड )
 

 
१. ज्ञान –- भगवान् सर्वज्ञ हैं । वे स्वतः सर्वदा पूर्ण रूप से

समस्त पदार्थों का साक्षात्कार करते हैं ।
 

 
२. बल–भगवान् समस्त पदार्थों को धारण करते हैं । ऐसा

करने से उनको कोई श्रम नहीं होता ।
 

 
३. ऐश्वर्य –- भगवान् समस्त पदार्थों का नियमन करते हैं ।

वह सर्वनियन्ता हैं ।
 

 
४. वीर्य -- धारण और नियमन करने में वे कभी शिथिल

नहीं होते । सब का उपादान होने पर भी उनमें

कभी कोई विकार नहीं होता ।
 

 
५.
 
शक्ति - - अघंटित को घटित करने की सामर्थ्य उनमें है ।

 
६. तेज – उनको किसी सहकारी की अपेक्षा नहीं होती ।

वे कभी किसी से पराभूत नहीं होते ।
 

 
७. सौशील्य -- भगवान् की सुशीलता यह है कि वे महान्

से महान् होते हुए छोटे से छोटे से मिलते हैं ।
 

 
८. वात्सल्य -- गोमाता का अपने बछड़े के प्रति, माता का

अपनी सन्तान के प्रति जो प्रेम देखा जाता है उसे

वात्सल्य कहते है। भगवान् प्रेमपूर्वक अपने

अभिमतजनों के दोषों को क्षमा के द्वारा नष्ट

कर देते हैं । यह भगवान् का वात्सल्य है ।
 

 
. मार्दव -- भगवान् के स्वभाव में मृदुता है जिसके कारण

वे अपने अभिमत जनों के विरह को सहन नहीं

कर पाते और सरलता से उनको प्राप्त हो

जाते हैं ।