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( ठ )
 
शरणागतिगद्य और वैकुण्ठगद्य में इनका नाम निर्देश है ।
शंख, चक्र, एवं गदा के साथ भगवान् के एक कर में कमल
का भी उल्लेख मिलता है । परमसंहिता के अनुसार भगवान्
के कमल में सृष्टि का, चक्र में स्थिति का, गदा में संहार का,
शंख में मुक्ति का बीज है । भगवान् के पाँच आयुध आकाश
वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी के शक्ति केन्द्र भी माने
जाते हैं ।
 
भूषणों और श्रायुधों का रहस्य - भगवान् के रूप, भूषणों
एवं आयुधों का रहस्य यह है कि जगत के समस्त चेतनाचेतन
तत्त्वों का केन्द्र इनमें विद्यमान है। कौस्तुभमरिण चेतन
जीवात्मा का प्रतीक है। श्रीवत्स चिन्ह प्रकृति का केन्द्र है।
गदा में महत्तत्व, शंख में सात्विक अहंकार, शाङ्ग धनुष में
तामस अहंकार, खड्ग में ज्ञान, चक्र में मन, वारणों में ज्ञाने-
न्द्रियाँ और कर्मेन्द्रियाँ, वनमाला में पञ्चमहाभूतों का अनुभव
किया जाता है ।
 
गुरग— भगवान् असंख्य कल्याण गुणों के आकर हैं। तीनों
ही गद्यों में इनका उल्लेख मिलता है । ये सारे गुरग स्वाभाविक
हैं तथा सीमारहित हैं। ज्ञान, बल, ऐश्वर्य, वीर्य, शक्ति और
तेज ये छ: प्रधान गुग हैं। इनका विस्तार अन्य गुणों में
मिलता है। इन अन्य गुणों में सौशल्य वात्सल्य आदि गुण
ऐसे हैं जिनका उपयोग नाश्रित जनों के संग्रह एवं संरक्षरण में
होता है । प्रमुख गुणों की तालिका एवं उनकी व्याख्या इस
 
प्रकार है-