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गोविन्द - दामोदर-स्तोत्र
 

 
( ५ )
 

कोई कमलनयनी बाला मनोविनोदके लिये पाले हुए अपने
करकमलपर बैठे किंशुककुसुमके समान रक्तवर्ण चोंचवाले सुग्गेको
 
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पढ़ा रही थी – पढ़ो तो तोता ! 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !'

 
( ६ )
 
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प्रत्येक घरमें समूह -की -समूह गोपाङ्गनाएँ पींजरोंमें पाली हुई
अपनी मैनाओंसे उनकी लड़खड़ाती हुई वाणीको क्षण-क्षण में 'हे

गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !' इत्यादि रूपसे कहलाने में लगी
रहती थीं ।
 

 
( ७ )
 

पालने में पौढ़े हुए अपने नन्हें बच्चेको सुलाती हुई सभी
गोपकन्याएँ ताल-स्वरके साथ 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव' इस पदको
ही गाती जाती थीं ।
 

 
(८)
 

हाथमे माखनका गोला लेकर मैया यशोदाने आँखमिचौनीकी
क्रीडामें व्यस्त बलरामके छोटे भाई कृष्णको बालकोंके बीचसे
पकड़कर पुकारा - 'अरे गोविन्द ! अरे दामोदर ! अरे माधव !'

 
( ९ )
 

विचित्र वर्णमय आभरणोंसे अत्यन्त सुन्दर प्रतीत होनेवाली
हे मुखकमलकी राजहंसीरूपिणी मेरी रसने ! तू सर्वप्रथम 'गोविन्द !
दामोदर ! माधव' इस ध्वनिका ही विस्तार कर ।
 
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