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* श्रीहरिः ॐ
 

 
श्रीबिल्व मङ्गलाचार्यविरचित
 

 
गोविन्द-दामोदर स्तोत्र
 

 
( १ )
 

 
[ जिस समय ] कौरव और पाण्डवोंके सामने भरी सभामे

दुःशासनने द्रौपदी के वस्त्र और बालोंको पकड़कर खींचा उस समय,

जिसका कोई दूसरा नाथ नहीं है ऐसी द्रौपदीने रोकर पुकारा - 'हे

गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव !'
 

 
( २ )
 

 
'हे श्रीकृष्ण ! हे विष्णो ! हे मधुकैटभको मारनेवाले ! हे

भक्तोंके ऊपर अनुकम्पा करनेवाले ! हे भगवन् ! हे मुरारे ! हे केशव !

हे लोकेश्वर ! हे गोविन्द ! हे दामोदर ! हे माधव ! मेरी रक्षा

करो, रक्षा करो ।'
 

 
( ३ )
 

 
जिनकी चित्तवृत्ति मुरारिके चरणकमलोंमें लगी हुई है वे सभी

गोपकन्याएँ दूध-दही बेचनेकी इच्छा से घरसे चलीं । उनका मन तो

मुरारिके पास था; अतः प्रेमवश सुध-बुध भूल जाने के कारण 'दही लो

दही' इसके स्थानमें जोर-जोरसे 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !'

आदि पुकारने लगीं।
 

 
(४)
 

 
ओखली में धान भरे हुए हैं, उन्हें मुग्धा गोपरमणियाँ मूसलों से

कूट रही हैं, और कूटते-कूटते कृष्णप्रेम में विभोर होकर 'गोविन्द !

दामोदर ! माधव !' इस प्रकार गायन करती जाती हैं।
 

 
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